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बेमतलब हम कहीं न घूमें



✍️डा सुभाष चन्द्र गुरुदेव

बेमतलब हम कहीं न घूमें
हमें घुमाया जाता है।
दूर वादियों पर बिठला,
हमें रिझाया जाता है।।
क्या तेरे घर नहीं साधन,
हड्डियां तुड़वाने को।।
जिसके निमित्त भेज न्योता।
 हमें बुलाया जाता है।।


हम ना बंग्ला देश गये थे,
करने को मीठी बातें।
न ही खुद जूझे कारगिल में,
सहने पाकी आघातें।
भूटान में भी किया हासिल,
केवल धक्का-मुक्की से।
बोल नहीं चीन पाता देख,
चारों तरफी हालातें।।


तोड़ फोड़ करने में हम अब, 
विशेषज्ञ कहलाते हैं,
शर्त है ऐसे न्योतों के बिन,
बाहर कहीं न जाते हैं।
हो आये लंका,माल द्वीप,
नैपाल दुखों को हरने। 
राष्ट्र संघ की  शांन्ति सेना,
के सदस्य बन जाते हैं।।


शांन्ति उसी की रहे गुलाम,
जिसके पास शक्ति होती।
दया दृष्टि निष्कपट भावना,

देश भक्ति भूरित होती।
वीरों के बलिदानों को कुछ ,
कम कभी न आंका जाता।
जिनसे देश की सर्वोत्कृष्ट ,
भाव भूमि विरचित होती।।

 

*लखनऊ



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