✍️सलोनी क्षितिज रस्तोगी
दो दीवारों का घर, प्यार का आलय बना दिया
श्रम की पूंजी से, दरो दीवार सजा दिया
ममता की छांव से, खुशियों की रंगत भर दी
बेज़ार गुलिस्तां में, खुशबुएं भर दी
शिथिल पड़े अभिज्ञान को, हवा दे जगा दिया
भटके कारवां को , मंज़िल तक पहुंचा दिया
है अभी सोच, आसमां तक जाने की
मुट्ठी में चांद तारे , तोड़ लाने की
इसी उम्मीद से तन मन धन लगा दिया
छोटे से चमन को, बागबा॑ बना दिया
अब नहीं डर, इस चमन के उजड़ने का
सलोने' क्षितिज' पर, ये मुकां बना लिया।।
*जयपुर (राजस्थान)
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