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अध्यात्म, नीति और मौलिकता का प्रबन्ध काव्य है छहढाला


'रसानुभूति' द्वारा परिचर्चा आयोजित



इंदौर। रस छन्द, अलंकार, अभिव्यंजना, बिम्ब विधान के अतिरिक्त राई में  सागर उतर आया! सही मायने में  छहढाला अध्यात्म, नीति और मौलिकता का प्रबन्ध काव्य है। ये उद्गार दिल्ली के डॉ. वीरसागर जैन ने सर्वोदय अहिंसा ट्रस्ट एवं मातृभाषा उन्नयन संस्थान द्वारा आयोजित जैन साहित्यकारों के सामाजिक/धार्मिक,सांस्कृतिक और नैतिक अवदान को परिलक्षित करती वैश्विक फलक पर साहित्यिक विमर्श की साप्ताहिक श्रृंखला रसानुभूति  के अन्तर्गत द्वितीय परिचर्चा के दौरान कही।

कार्यक्रम का शुभारम्भ दिव्य जैन मंगलायतन द्वारा छहढाला की प्रथम ढाल के पाठ से हुआ। तत्पश्चात् दीया जैन दिल्ली द्वारा किया गया।  इस द्वितीय परिचर्चा का विषय मध्यकालीन साहित्य और पण्डित दौलतरामजी की छहढाला था, जिसमें अनेक विद्वानों और साहित्यकारों द्वारा जिज्ञासायें  व्यक्त कीं जिनका समुचित समाधान इस चर्चा में आमन्त्रित विद्वान् साहित्यकार डॉ. वीरसागर जैन, अध्यक्ष जैनदर्शन विभाग, लाल बहादुर केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, दिल्ली ने दिया।
सभा के अध्यक्ष श्री विजय बड़जात्या अध्यक्ष, मुमुक्षु समाज, इन्दौर द्वारा अध्यक्षीय भाषण तथा परिचर्चा का संचालन अंकुर शास्त्री एंकर कम एडिटर, दूरदर्शन भोपाल एवं अभिषेक शास्त्री-जन सम्पर्क विभाग भोपाल के साथ किया। आभार- प्रदर्शन डॉ. अर्पण जैन अविचल, एवं नीतेश गुप्ता इन्दौर द्वारा किया गया। परिचर्चा के संयोजक गणतंत्र जैन ओजस्वी, संजय शास्त्री, सर्वोदय अहिंसा  रहे। इस परिचर्चा में  नीना जोशी, नरेन्द्रपाल जैन, भावना शर्मा, नीतेश गुप्ता आदि अनेक साथी उपस्थित रहे। इस कार्यक्रम का सीधा प्रसारण सर्वोदय अहिंसा के यूट्यूब चैनल पर किया गया।

 


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