*अंजनी कुमार
जो हजारों दिलों में दीपक सा जला करता था जो कल तक
ऐसी भी क्या मजबुरी थीं, जो खुद से खुद को बुझा गया
जिन्दगी पर भारी मौत, कभी न जागने वाली नींद में उसे सुला गया
ऐसा भी कौन सा बवंडर था, जो उस चिराग को बुझा गया
जिसे देखकर खुश हुआ करता था जहां, वो सब को रुला गया
कलाकार था बड़ा रील लाईफ में जीतकर, रियल लाईफ से हार गया
क्या, क्यो, कैसे, किससे अनगिनत सवालों में हम सब को उलझा गया
धन-दौलत, ओहदा शायद उतने मायने नहीं, इतना तो जरुर समझा गया
मुखौटा पहनकर हीं छुपा लेता खुद को, क्यो मौत से खुद आंखे मिला गया
जिसे देखकर खुश हुआ करता था जहां, वो सब को रुला गया
*अशोक रोड, टेल्को
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