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उफ! कुछ लोग



*मीनाक्षी भसीन

बात-बात पर ये आंकने वाले लोग

भीतर ही भीतर ये डांटने वाले लोग

 

सामने से जो पीठ थपथपाते रहे,

पीछे से आपको गिराते हुए लोग

 

काम ही काम है, जो कहते रहे

हर क्षण मगर बातें बनाते हुए लोग

 

तालियां, वाह-वाही से मुस्करा न सके

दूजे को धक्का देकर इतराने वाले लोग

 

बेहिसाब पैसे जिनके बैंकों में सड़ते रहे

कामगारों की तनखा को खा जाने वाले लोग

 

कोई जिम्मेदारी कभी खुद ने निभाई नहीं

कर्तव्यों का पाठ नित सिखाते हुए लोग

 

स्वदेश का माल जो हड़पते रहे

विदेशों में मुंह को छिपाते हुए लोग

 

आत्मा बेच आए जो कुर्सी के लिए

सियासत में जनता को जलाते हुए लोग

 

क्या कहूं मीनाक्षी की कलम महोब्बत लिख पाती नहीं

इंसानियत की लाशों पे जो मुस्कराते हैं कुछ लोग

 


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