*आशु द्विवेदी
बारह साल की बच्ची थी मैं।
जब पहली बार टीवी पर तुमको देखा था।
प्रीत बन कर तुमने तब मुझको बड़ा हसाँया था।
देखते ही देखते मानव बन कर आए तुम।
सच उस रूप में भी लगते बड़े ही प्यारे तुम।
पवित्र रिश्ता से जब नाता तुमने तोड दिया।
उस दिन से मैंने पवित्र रिश्ता देखना छोड़ दिया।
फिर हुआ हर्षित मन मेरा।
इंशान बन बड़े पर्दे पर जब तू छाया।
मुझको अपना दीवाना बनाया।
फिर रघू सरफराज ब्योमकेश बन मेरे मन को लुभाया।
देख के तुम को बड़ी हुईं।
तुम्हारी एमएस धोनी मेरे।
बीसवें जन्म दिन पर पर्दे पर आई।
खुशी से मैं फूले ना समाई
अपने जन्म दिन तीस सितम्बर को।
मैं तुम्हारी फिल्म देख के आई।
लगा मैने जमाने की हर खुशी पाई।
जब भी सुनती टीवी पर आज तुम आने वाले हो।
टीवी के आगे से मैं बिल्कुल ना हटती थी।
तुम्हें देखने के लिए ही तो बस टीवी मैं चलाती थी।
तुम्हारे सिवान कहाँ कुछ और।
टीवी पर मैं देखा करती थी।
तुम्हारी एक झलक देखने को।
में दोड़ी चली आती थी।
सब कहते थे मुझको मैं तो बिल्कुल पागल थी।
हो नाम तुम्हारा पूरी दुनिया में।
ये रब से दुआ मैं करती थी।
न जाने क्यूँ तुम्हें देख कर।
मैं अपना दर्द भूल जाती थी।
मिल सकूं एक बार जीवन में तुमसे।
बस यही आखरी मेरी तमन्ना थी।
पर भगवान का खेल तो देखो।
दुनिया ही तुम छोड़ गए
एक बार तो आके बताओ सुशांत
क्यों मेरी तरह लाखो दिल तुम तोड़ गए।
सुशांत कहाँ तुम चले गए
*दिल्ली
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