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सूरज को ढलते देखा है



*टीकम चन्दर ढोडरिया


सूरज को ढलते देखा है

सपनों को पलते देखा है

 

फूल खिले मन के आँगन में

तुमकों जब हँसते देखा है

 

अपनों के खातिर बापू को

जीवन भर खटते देखा है

 

कब सोयी माँ ज्ञात नहीं कुछ

हमनें बस जगते देखा है

 

पनघट पर यादों की तेरी

पायल को बजते देखा है

 

अक्षर-अक्षर में छन्दों के

तुझकों ही सजते देखा है

*छबड़ा जिला,बांरा,राजस्थान

 


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