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सीमा पर चढ़ आया दुश्मन



*हमीद कानपुरी

भूलो अपनी दलगत अनबन।

सीमा  पर चढ़  आया दुश्मन।

खतरे  में  है  अब घर आँगन।

सीमा  पर चढ़  आया दुश्मन।

 

बात   नहीं   पोशीदा  अब  ये,

जान गया है इसको जन जन।

मत दो मन बढ़ अपना भाषन।

सीमा  पर चढ़  आया दुश्मन।

 

खूँटी  टाँगो  आज  सियासत। 

आपस की सब भूल  शिकायत। 

आज  पुकारे  फिर से  है  रन।

सीमा  पर चढ़  आया दुश्मन।

 

आपस में बैठो मिलजुल कर।

बात करो अब इसपर खुलकर।

आज व्यथित है यूँ ये तनमन।

सीमा  पर चढ़  आया दुश्मन।

 

ध्यान लगाओ इस पर हरपल।

किसको क्या करना है इसपल।

देखो  और  दिखाओ  दरपन।

सीमा  पर चढ़  आया दुश्मन।

 

*अब्दुल हमीद इदरीसी,बिरहाना रोड, कानपुर

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