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साथ उनके लाचारियाँ हैं बहुत



*नवीन माथुर पंचोली

साथ उनके लाचारियाँ हैं बहुत।

पास जिनके बेगारियाँ हैं बहुत।

 

मंजिलें  हैं  हरेक सफ़र लेकिन,

राह इनकी  दुश्वारियाँ   हैं बहुत ।

 

बोझ से झुक गया है तन उनका,

जिनके सिर पर उधारियाँ हैं बहुत ।

 

आज जीने के इंतजाम है कम,

रोज़ मरने की तैयारियाँ  हैं बहुत ।

 

लोग  सब  बच-बचाके  बैठे हैं,

घर से बाहर बीमारियाँ हैं बहुत।

*अमझेरा धार मप्र

 


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