बहुत शोर करती है चिड़ियाँ
सुबह-सुबह जब देखे धूप
हवा भी मन्द-मन्द चल पड़ती है
मौसम के बिल्कुल अनुरूप
गाय ,बकरी ,कुत्ते ,बिल्ली
सारे उठकर चल पड़ते हैं
मुझे लगता है ये सारे चराचर
बिन वेतन रोज़गार करते हैं
बादल से कौन कहता है
संग हवा के उड़ते रहो
किनारों से कहा रुकने को
और नदी से कहा बहते रहो
बड़े ढीठ हैं पहाड़-पर्वत
ज़िद्दी बच्चे के हठ जैसे
हटाने को इन्हें रास्ते से मैंने
पापड़ बेले कैसे-कैसे
उग रहे पौधे,लताएं,वृक्ष और
खर-पतवार
फूल भी जाने किसकी आज्ञा से
रंग-बिरंगे खिले हुए हैं
जाने दो अब कितना सोचूँ
प्रकृति में सारे मिले हुए हैं।
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