*शिव नारायण सिंह 'शान'
शाम होते ही
जिंदगी सहम सी जाती है
सभी अपने अपने पंख फड़फड़ाकर
भागने लगते हैं
सड़कों पर
गलियों से
अपने अपने झरोखों की ओर।
चारों ओर
सन्नाटे के साथ
दिन का उजाला सिमटने लगता है,
रात अपनी बाहों मे
समेटने को तैयार है
निहार रही है धीरे से
मुस्कुरा रही है
उसको अपने पर गर्व है
शायद पता नहीं है उसे
कि मुझे भी
अपने को समेटना होगा।
समय के साथ
मंजिले बदलती हैं,
रास्ते भी बदलते हैं,
समय ही बलवान है
सहसा आसमान से
बिजली कड़की
रूह कांप उठी।
रात भूल गयी अपने गुरुर को
समा गयी उसी प्रकाश में
एक पल के लिए
पता चला कोई और भी है
जो हमे बांध सकता है।
उसी क्षण
तेज हवा का झोंका आया
पानी को भी उड़ा ले आया
बारिश की फुहार ने
तन-मन को भिंगो दिया
समेट लिया संसार को
भीनी-भीनी खुशबू से
अपने रुआब के दृश्य से।
समय के चक्र ने
तोड़ दिया भ्रम को
उजाले ने अपनी चादर से
ढक लिया अंधकार को
यह राज बताकर
कि हम प्रकृति के अनमोल रत्न हैं।
समय के साथ सभी,
अपने में मस्त हैं, व्यस्त हैं।।
बलिया, उ.प्र.
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