*डा. रमेशचंद्र
पिता तुम हमेशा याद आते हो
मन में श्रद्धा -भाव जगाते हो।
जब तुम थे, हमारा संबल थे
तुम्हारे होने पर हम निश्चिंत थे
तुमने हमेशा प्यार किया था
न हम किसी चीज़ से वंचित थे
अब भी सपनों में आ जाते हो।
न भूल पाएंगें तुम्हारे एहसानों को
न चुका पाएंगें तुम्हारे कर्जो को
कितना भी करलें हम दान-पुण्य
पूरा नहीं कर सकते फ़र्जो को
राह भटकने पर राह दिखाते हो।
तुम्हारे संस्कार, अनुशासन से
हम अब भी प्रेरणा पाते हैं
जब भी तुम्हारी याद आती है
आंखों में आंसू भर आते है
पिता क्या होता है, बतलाते हो।
घर को स्वर्ग बनाया था तुमने
पढ़ा-लिखा कर इंसान बनाया
तुम्हारे शील-संस्कारों से हमने
सत्य को अपना ईमान बनाया
हम तुम पर गर्व करते हैं
इसीलिए तुम पिता कहलाते हो ।
*इंदौर म. प्र.
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