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पर्यावरण सांसों की डोर



*रश्मि वत्स

मुखरित-सुरभित पर्यावरण की

चाह सभी ओर ,पर स्वयं कर
दोहन इसका मानव मचा रहा है शोर
पर्यावरण है सांसों की डोर ,थामे रहोगे
दामन इसका तभी पाओगे छोर
शोषण करता प्रकृति अपनी का
फैला प्रदूषण चहूंओर ओर
कारखानों से उड़ता धुआँ
घोट रहा सासों की डोर
गंदगीं बहाते नदियों में
विषैला होता नीर
प्लास्टिक का उपयोग स्वंयकर
धरा को देते पीड़
स्वार्थहित काट पेड़ों कों
आहत करते प्रकृति को
दोषारोपण कर एक दूजे पर
खुद अपने को भला दिखाते
जो अब भी सुधरा न मानव
तो हो जाएगी भोर
विपदाओं से बच ना पाओगे
गंवा दोगे बस जीवन की डोर ।
आहत न करो तुम प्रकृति को
संरक्षण करो पेड़ों का
आओ मिलकर लें यह प्रण
बचाव करें पर्यावरण का हम ।
*मेरठ(उत्तर प्रदेश)

 


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