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मुझसे मध्यस्थता करवालो



*डा. रमेशचंद्र


मैं देखता हूं कि क ई पति - पत्नी आपसी मनमुटाव और झगड़े के कारण तलाक लेना चाहते हैं। कुछ मन में खटास पाले रहते हैं। क ई तो ऐसे भी देखने को मिलते हैं कि दोनों एक ही छत के नीचे तो होते हैं, परन्तु उनमें न तो आपस में बातचीत होती है, न किसी प्रकार का संवाद, न आदान -प्रदान। 
ऐसा ही कई  देशों में भी मैंने देखा कि जरा -जरा सी बात पर झगड़ पड़ते हैं। सीमा पर दोनों की अक्सर झड़पे होती है और तो और सीज़ फायर जैसी दुर्घटनाएं भी हो जाती है। इसके कारण कितने ही फौज़ी जवान शहीद हो जाते हैं। दोनों देशों की आपसी लड़ाई में फौज़ी ज़वानों को मरवाना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं कहा जा सकता।
मुझे यह सब देख कर, सुन कर और पढ़ कर बहुत दुख होता  है। इसलिए मैंने टी. वी.,अखबारो, रेडियो और  बहुव से अन्य माध्यमों में यह इश्तिहार दे डाला है, कि भाइयों और बहनों, न  अपने घर में विवाद करो,  न  अपने पड़ोस में, न अपने देश की सीमा के बाहर अतिक्रमण करके, न जल, थल, नभ पर ही विवाद करें। यदि करते भी  हों और उसका कोई हल नहीं निकल पा रहा  है तो मैं  हूं ना! इस विवाद को सुलझाने के लिए। आप लोग  मुझसे संपर्क करो,  मुझसे मिलो, मुझे बताओ कि वास्तव में समस्या क्या है और तुम लोग वास्तव में क्या चाहते हो? 
यदि, मैं आप लोगों के विवाद का समाधान न निकाल दूं तो कहना। मैं ऐसा समाधान निकाल दूंगा कि 'सांप भी  मर जाएगा और लाठी भी नहीं टूटेगी। 'दोनों पक्षों को मैं इस प्रकार संतुष्ट कर दूंगा कि भविष्य में फिर विवाद अथवा झगड़े की नौबत ही नहीं आएगी। 
मैं आप लोगों की मध्यस्थता करने के लिए तैयार हूं, ज़रा मेरे पास आओ तो?  मैंने अपने आपको मध्यस्थता करने के लिए खुला छोड़ रखा है। मैं आप लोगों को पूर्ण विश्वास दिलाता हूं कि मैं मध्यस्थता के दौरान किसी भी पक्ष का अहित नहीं होने दूंगा न किसी पर दबाव डाल कर उसे मनवाने के लिए बाध्य करूंगा।
आप लोग यदि यह सोच रहे हों कि मैं मध्यस्थता करने के लिए इतना उतावला क्यों हूं, शायद अपनी तगड़ी फीस के लिए या किसी और तरीके से आपसे रूपया ऐठूंगा,  तो यह बात आप लोग अपने दिल से बिलकुल निकाल दीजिए। मैं मध्यस्थता बिलकुल " फ्री "  में करुंगा और इतना ही नहीं, मैं फ्री में चाय, नाश्ता और भोजन भी करवाऊंगा। मुझे एक बार मध्यस्थता का मौका तो देकर देखिए। आप लोग निश्चिंत होकर मेरे "ग़रीब़ खाने "पर आ सकते है। इसके लिए मैंने अपने घर के दरवाज़े खुले रख छोड़ रखे हैं और अपना "शैरू " भी हटा रखा है, ताकि वह आप जैसे सज्जनों पर न भौंक सके, ही गुर्रा सकें।
भाइयों और बहनों,  आप लोग शायद यह भी सोचते होगें कि मैं फ्री  में मध्यस्थता क्यों करना चाहता हूं तो मैं  साफ- साफ बता  देना चाहता हूं कि  मेरे पास आपही का दिया हुआ काफी माल है, और अब एकाएक मेरा ह्रदय परिवर्तन पर उतर आया है, इसलिए  मैं यह सब करने पर विवश हो गया  हूं। 
आप लोगों को मुझसे डरने, चमकने और घबराने की  बिलकुल भी जरुरत नहीं है। न ही किसी प्रकार की आशंका पालने की। आप लोग बेहिचक और बेखटके मेरे पास आ सकते हैं। समझ गये हैं न..। 
*इंदौर ,म.प्र.


 


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