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मन का दरपन आज कुछ धुँधला-सा है



*भारती शर्मा


मन का दरपन आज कुछ धुँधला-सा है
उसका भी अंदाज़ कुछ बदला-सा है

ठोकरें खाई हैं हमने बारहा
रास्ता अब जाके कुछ सम्भला-सा है

जब तलक है दरमियाँ ये फासले
सिलसिला रिश्तों का कुछ उजला-सा है

माँ को देखा ख़्वाब में तो मन मेरा
बनके बच्चा आज कुछ मचला-सा है

जाने किस अंदाज़ पर है वो फिदा
इश्क़ में मेरे वो कुछ पगला-सा है


*अलीगढ़ (उ.प्र.)


 


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