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खुद पे रखते हैं वो गुमान बहुत



*संगीता श्रीवास्तव 'सुमन'


खुद पे रखते हैं वो गुमान बहुत
जो बने फिरते हैं महान बहुत |


यूँ तो सर पे है आसमान बहुत
राह मुश्किल है इम्तिहान बहुत |


फ़िक्र का है यहाँ उफ़ान बहुत 
थक गया है वो पासबान बहुत|


कितनी उलझन में डाल रख्खा है
देता रहता है जो बयान बहुत |


हारकर ज़िन्दगी गये कितने 
और इनको है इत्मिनान बहुत |


रोककर क्या हुआ उन्हें हासिल 
जो हैं पहले से बेज़ुबान बहुत |


वो कतरते हैं मेरे पर अक्सर 
जिनको डर है मेरी उड़ान बहुत |


इश्क और मुश्क कब कहाँ छुपते
सिर्फ़ आँखों की है ज़ुबान बहुत |


जोश में होश वो नहीं खोते 
मुश्किलों के जो दरमियान बहुत |


*छिंदवा़ड़ा (म.प्र.)


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