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खामोशियों को चीरती ये किसकी  है,



*पूजा झा


खामोशियों को चीरती ये किसकी  है,
वक़्त जो अपनी है तो ये फिर बेवफा क्यों है?


ढह गये हैं मीनारें उम्मीदों की मगर,
 किसी से अब भी वफ़ा क्यों है?


कोशिश तो करते हैं रंज-ओ-गम को ज़ाहिर न करें,
कलम है कि सुनती नहीं रुसवा क्यों है?


रात गुज़री है मेरी वीरान अंधेरों में सभी,
जिंदगी उजालों की मोहताज़ सी क्यों है?


हमने तो पुकारा हर मोड़ पर उनको हरशुं,
ना जाने ये रूह उनकी तलबगार क्यों है?


*जंदाहा हाजीपुर


 


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