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हरे पत्ते



*डॉ. अहिल्या तिवारी

एक वृक्ष की

छाया में बैठ

देखा मैंने कुछ

गिरे पत्तों को

सूखे, पीले, हरे।

एक ही वृक्ष से

जन्मे ये पत्ते

बिखर जाते हैं

पा कर अन्जाम भिन्न

ये मिट जाते हैं।

एक हवा का झोंका

उड़ा ले गया

सूखे पत्तों को

पीले पत्ते

मानो रोगी हैं

गल गए वहीं पड़े।

फिर मैंने देखा

बचे कुछ

हरे पत्तों को

जानवरों के ग्रास

बनने से पहले

उठा लिए मैंने

उन बिखरे

हरे पत्तों को

और,

लिख दिये उन पर

कुछ शब्द

कुछ बातें लिखी

धरती के लिए

कुछ अर्पण कर दी

गगन को

कुछ भेंट कर दी

भगवान को

और,

कुछ पत्तों पर

मैंने लिख दिया

एक संदेश

अमन का

इंसानों के लिए।

*रायपुर, छत्तीसगढ़

 


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