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बाहर मृत्यु टहल रही है



*मंदाकिनी श्रीवास्तव


सावधान!

घर के बाहर मृत्यु टहल रही है।

दुनिया स्तब्ध है,मौन है।

छुपाकर रख देना कहीं संदूक में,

घर के अंदर जो चलती साँसे हैं उन्हें

क्योंकि घर के बाहर ताक में है

छद्म वेश में दस्यु।

बचाकर रखना उसकी नज़र से 

सुबह-शाम भगौनों में पकती

थोड़ी-थोड़ी मुस्कुराहट,

नेह की खुशबू में तर-बतर,

थोड़ी ख़ुशमिज़ाजी घर के अंदर

बाड़ बनाकर बचा लेना जो,

यूँ ही उग आया करती है 

ना! अभी साफ ना करना 

मन की क्यारियों को

दिन के पौधों को

करीने से सजाने के चक्कर में

कहीं खो न देना

लहककर, चहककर जीने का अंदाज़।

बेशक निकलना घर से बाहर 

मगर दरवाज़ा बंद रखना बेफिक़्री का

खिड़कियों से झाँक लेना जब भी मन हो

अपनों से बतियाने का,

आसमान का कुनबा है न पूरा का पूरा।

सावधान कि मृत्यु कई खेपें  पहुँचा चुकी है

अपनी गुफाओं में

मगर फिर भी इंतज़ार में

हाथ बाँधे घूम रही है,

टहल रही है इत्मीनान से

सब्र रखो

भर लो घर के कोने-कोने में ज़िंदगी

और फिर निडर हो,

आँखों में आँखें डाल कहना किसी दिन

कि

आओ तुम्हें भी जीना सिखा दूँ।

*किरंदुल जिला-दन्तेवाड़ा,छत्तीसगढ़

 


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