*गौरी गोयल
कुछ बात तो ज़रूर है
इन सूनी-सी अंधेरी राहों में,
सोचते-सोचते दूर ले जाती हैं
और आंसुओं को
बड़े प्यार से छुपातीं हैं,
हर बात मेरी
बिना कुछ कहे सुनती जाती हैं
और साथ ना छोड़ने का
विश्वास दिलाती हैं
हाँ, ये सितारों को
चमकने का मौक़ा देती हैं
चांद से गुप्तगू कराती हैं
बिना कहे सवालों के जवाब भी देती हैं
फिर डराती क्यूँ हैं?
संभलने के लिए
आवाज़ें क्यूँ नही देतीं?
प्यार से गले क्यूँ नहीं लगातीं?
और अचानक क्यूँ
साथ छोड़ जाती है?
क्या हर राह
मंज़िल की ओर नही ले जाती?
क्या हर राह के
अपने नियम होते हैं?
मैं कैसे जानूं कौनसी राह मेरे मंज़िल की है?
*रायपुर, छ. ग.
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