*अनामिका सोनी
युवा स्वप्न का दुखद अंत... मुस्कुराहट के मुखौटे का छिन्न-भिन्न हो जाना... ऊर्जावान, जिंदादिल व्यक्तित्व का नियति के क्रूर हाथों में अकस्मात खुद को सौंप देना ...और इससे आगे बढ़कर क्या कहा जाए... यही कि तनाव का, अवसाद का अपने क्रूर हाथों से मासूम मन को जकड़ लेना और तब तक ना छोड़ना जब तक मन खुद को उस वक्त के आगे समर्पित ना कर दे ।उफ्फ़.......तनाव की,निराशा की, विचलित कर देने वाली परिस्थिति की इतनी गहरी पकड़ ...पर यह पकड़ अचानक तो इतनी मजबूत नहीं होती कि व्यक्ति को जकड़े और असहाय कर दें, शायद धीरे... धीरे.. धीरे अपने क्रूर हाथों से इंसान को खोखला करती है और फिर उसे निढालकर अपने आगोश में ले लेती है और फिर तनाव के ऐसे चक्रव्यूह में फंस कर ऐसे लोग भी जीवन लीला का अंत कर लेते हैं जो आम जनता की प्रेरणा होते हैं क्या यही है चकाचौंध भरी दुनिया का खोखला सच... शान,शौकत, इज्जत,पैसा,रुतबा,परिवार शायद कोई भी तब उन्हें दिखाई नहीं देता ,पर ऐसे में यदि मन के कोने में छुपे अवसाद, दुःख, परेशानी का दर्द कोई समझ ले और समझ कर उसे बांट लें तो दर्द,दर्द नहीं रह जाता। यही कमी रह जाती है.... व्यक्ति सब कुछ पाने की, सब कुछ बटोरने की चाहत में वह बटोरना भूल जाता है जो जिंदगी का अहम् हिस्सा होता है... वह होता है एक अदद साथी, कोई अपना, जिससे वह अपना दुःख दर्द बांट सके, कह सके हर वह परेशानी, जिसका हंसी खिलखिलाहट के साथ मिलकर हल ढूंढा जा सके, जो हर कदम पर बहुत "परफेक्शन" से नहीं तो "खिलंदड़पन" से ही सही, समस्या को दूर कर दे। जिससे सब कुछ कह कर मन हल्का कर सके, जो बात- बेबात ठहाके लगाकर परेशानियों को धूल चटा दे, वह जो कंधे पर हाथ रख कर कह दे... चल छोड़.. यह भी कोई दुःख है.. "मैं हूं ना"..। ऐसे हमराही, हमसफर, हमसाथी का साथ दुःखों से मीलों दूर ले जा सकता है ...सारी दुनिया की दौलत, सारे जग की परेशानियां, सारे तनाव,अवसाद एक तरफ और ऐसे साथी का साथ एक तरफ। इसलिए हम सभी के पास भी सोचने का वक्त है यदि हम भी छोटी-छोटी परेशानियों से जूझ रहे हैं और उन्हें अपना मालिक बना बैठे हैं तो अभी समय है इन्हें अपनों से कह दें.. ना झिझकें.. शायद कुछ हंसता मुस्कुराता समाधान आपके सामने उपस्थित हो जाए जिसका समाधान ना दिखाई दे रहा हो ,शायद फिर किसी का सामना ना हो इस अंतिम विकल्प से ...।
युवा स्वप्न का दुखद अंत... मुस्कुराहट के मुखौटे का छिन्न-भिन्न हो जाना... ऊर्जावान, जिंदादिल व्यक्तित्व का नियति के क्रूर हाथों में अकस्मात खुद को सौंप देना ...और इससे आगे बढ़कर क्या कहा जाए... यही कि तनाव का, अवसाद का अपने क्रूर हाथों से मासूम मन को जकड़ लेना और तब तक ना छोड़ना जब तक मन खुद को उस वक्त के आगे समर्पित ना कर दे ।उफ्फ़.......तनाव की,निराशा की, विचलित कर देने वाली परिस्थिति की इतनी गहरी पकड़ ...पर यह पकड़ अचानक तो इतनी मजबूत नहीं होती कि व्यक्ति को जकड़े और असहाय कर दें, शायद धीरे... धीरे.. धीरे अपने क्रूर हाथों से इंसान को खोखला करती है और फिर उसे निढालकर अपने आगोश में ले लेती है और फिर तनाव के ऐसे चक्रव्यूह में फंस कर ऐसे लोग भी जीवन लीला का अंत कर लेते हैं जो आम जनता की प्रेरणा होते हैं क्या यही है चकाचौंध भरी दुनिया का खोखला सच... शान,शौकत, इज्जत,पैसा,रुतबा,परिवार शायद कोई भी तब उन्हें दिखाई नहीं देता ,पर ऐसे में यदि मन के कोने में छुपे अवसाद, दुःख, परेशानी का दर्द कोई समझ ले और समझ कर उसे बांट लें तो दर्द,दर्द नहीं रह जाता। यही कमी रह जाती है.... व्यक्ति सब कुछ पाने की, सब कुछ बटोरने की चाहत में वह बटोरना भूल जाता है जो जिंदगी का अहम् हिस्सा होता है... वह होता है एक अदद साथी, कोई अपना, जिससे वह अपना दुःख दर्द बांट सके, कह सके हर वह परेशानी, जिसका हंसी खिलखिलाहट के साथ मिलकर हल ढूंढा जा सके, जो हर कदम पर बहुत "परफेक्शन" से नहीं तो "खिलंदड़पन" से ही सही, समस्या को दूर कर दे। जिससे सब कुछ कह कर मन हल्का कर सके, जो बात- बेबात ठहाके लगाकर परेशानियों को धूल चटा दे, वह जो कंधे पर हाथ रख कर कह दे... चल छोड़.. यह भी कोई दुःख है.. "मैं हूं ना"..। ऐसे हमराही, हमसफर, हमसाथी का साथ दुःखों से मीलों दूर ले जा सकता है ...सारी दुनिया की दौलत, सारे जग की परेशानियां, सारे तनाव,अवसाद एक तरफ और ऐसे साथी का साथ एक तरफ। इसलिए हम सभी के पास भी सोचने का वक्त है यदि हम भी छोटी-छोटी परेशानियों से जूझ रहे हैं और उन्हें अपना मालिक बना बैठे हैं तो अभी समय है इन्हें अपनों से कह दें.. ना झिझकें.. शायद कुछ हंसता मुस्कुराता समाधान आपके सामने उपस्थित हो जाए जिसका समाधान ना दिखाई दे रहा हो ,शायद फिर किसी का सामना ना हो इस अंतिम विकल्प से ...।
*उज्जैन (म.प्र.)
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