म.प्र. साहित्य अकादमी भोपाल द्वारा नारदमुनि पुरस्कार से अलंकृत

आँखों के आंसू



*संजय वर्मा 'दॄष्टि'

बेटी के ससुराल में 

पिता के आने की खबर 

बेसब्री तोड़ देती

बेटी की आँखे 

निहारती राहों को। 

देर होने पर 

छलकने लगते आँसू 

दहलीज पर आवाज लगाती 

पिता की आवाज -बेटी।

रिश्तों ,काम काज को छोड़ 

पग हिरणी सी चाल बने

ऐसी निर्मल हवा 

सूखा देती आँखों के आंसू 

लिपट पड़ती अपने पिता से।

रोता -हँसता चेहरा बोल उठता 

पापा 

इतनी देर कैसे हो गई

समय रिश्तों के

पंख लगा उड़ने लगा 

मगर यादें वही रुकी रही 

मानो कह रही हो 

अब न आ सकूंगा मेरी बेटी।

मगर अब भी 

बेटी की आँखे

निहारती राहों को ।

याद आने पर 

छलकने लगते आँसू 

दहलीज पर आवाज लगाती 

पिता की आवाज -बेटी

अब न आ सकी।

पिता की राह निहारने के बजाय 

अब आकाश के

तारों में ढूढ़ रही पिता 

कहते है कि लोग मरने के बाद 

बन जाते है तारे। 

आंसू ढुलक पड़ते 

रोज गालों पर 

और सुख जाते अपने आप। 

क्योकि निर्मल हवा कभी 

सूखा देती थी आँखों के आंसू 

जो अब है थम।

*मनावर जिला धार (म प्र )

 


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