Subscribe Us

आज का एकलव्य



*विनय मोहन 'खारवन'

वह एक प्राइवेट स्कूल में टीचर है ।गुरु द्रोण से उनकी तुलना होती है। जिंदगी के तीस बरस स्कूल के नाम कर दिए हैं ।वह बात अलग है कि साइकिल की हालत खस्ता है। वेतन के नाम पर उनका वेतन एक कलंक  है ।सर्दी में कबाड़ी बाजार से कोट खरीद कर बदन को गर्म करके रखते हैं ।बाजार से जब गुजरते हैं तो मास्टर जी नमस्ते, राम-राम ,सत श्री काल जैसे सम्बोधनों से वह झुके झुके जाते हैं। मन में खुशियों का सावन हिलोरे लेता है। पर घर पहुंचते ही पत्नी की चिक चिक सुनकर सारा सावन जेठ की गर्मी बनकर उड़नछू हो जाता है।

उस दिन स्कूल में प्रबंध समिति की परीक्षा परिणाम को लेकर बैठक थी। सब अध्यापकों का रिजल्ट डिस्कस हो रहा था। मास्टर जी की भी बारी आई ।मैनेजर बोला," मास्टर जी ,इस बार आप का रिजल्ट कम आया हैं।"

मास्टर जी हैरान थे। यह मैनेजर वही लड़का था जिसको वह पीट-पीटकर थक जाते थे ,पर वह नहीं पढ़ता था। दसवीं में दो बार फेल हो चुका था। रईस बाप का बेटा था।  सो आज स्कूल का मैनेजर भी था।

आज के इस एकलव्य को देख कर मास्टर जी हैरान थे। जो गुरु से पूछ रहा था कि उसे पढ़ना आता है या नहीं ।दिल हुआ कि पूछे कि बेटा तू क्या पढ़ता था। पर क्योंकि बेटी की शादी करनी थी। नौकरी कहीं हाथ से ना चली जाए ।तो हाथ जोड़कर खड़े हो गए और बोले," सर ,अगली बार शिकायत का मौका नहीं मिलेगा।"

मास्टर जी की आंखों की नमी किसी को नजर नहीं आई ,पर मैनेजर की आंखों की चमक सबको दिखी।

*जगाधरी, हरियाणा

 


अपने विचार/रचना आप भी हमें मेल कर सकते है- shabdpravah.ujjain@gmail.com पर।


साहित्य, कला, संस्कृति और समाज से जुड़ी लेख/रचनाएँ/समाचार अब नये वेब पोर्टल  शाश्वत सृजन पर देखेhttp://shashwatsrijan.com


यूटूयुब चैनल देखें और सब्सक्राइब करे- https://www.youtube.com/channel/UCpRyX9VM7WEY39QytlBjZiw 



एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ