*डॉ. अनिता जैन 'विपुला'
कुछ अतृप्त
तृष्णाओं के भंवर में
डूबा मन जीवन
हिचकोले खाता रहता
एक के बाद एक
अनगिनत आकांक्षाओं के
जाल में फंसता चला जाता
कुछ टूटे फानूसों पर
संगमरमर के महल के
सफेद झक सपने देखता
भग्न आशाओं की नीवों पर
मखमली ख्वाबों के किले बनाता
चाहतों मुहब्बतों नफ़रतों के
महीन रेशमी धागों को सुलझाता
सूखी सिकुड़ी पंखुड़ियों से
गुलाब के गुलशन उगाता
टूटी फूटी उम्मीदों की ताबीरों पर
जीवन को जीता चला जाता
यह इंसान की फितरत है
उम्मीदों के दीये जलाना
आशाओं के घृत से सींचना
ख्वाबों की बत्तियां भिगोना
और अपनी उन अनगिनत
आकांक्षाओं तृष्णाओं में
अपने को खड़े रख पाना
मायूसियों से लड़ना
दुःखों से झगड़ना
चिल्लप करना
और खिलखिलाना
नहीं भूलता वह जीना !!
*डॉ. अनिता जैन 'विपुला', उदयपुर
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