*संजय वर्मा 'दृष्टि'
सूरज इतने
प्रचण्ड ना बनो
मालूम है प्रचण्डता
सूरज को दीप दिखाना
जैसी कहावतों से तो लगता
तपिश कम होने की
मांगे पूरी न होगी कभी।
किन्तु विश्वास है
इस धरा के लिए
हे सूरज ,ऋतुओं में
ताप को समान रखों
जिसके बढ़ने से रहवासी
प्रचंडता से हो रहे दुःखी
धरा के घट सूख रहे
तितलियों के पंख जल रहे।
जल ही जीवन है
हे सूरज उसे न सोखों
बिन पानी मृत्यु दोष
इंसानों ,पशु पक्षियों,
किट पतंगों का लगेगा
शायद तुम्हें पता ही होगा
क्योंकि तुम सूरज हो।
प्रदूषण फैलाने के
पृथ्वी के रहवासी भी
होंगे भागीदार
घरों में दुबके हुए
मतलबी इंसानो को
बाहर झाकने की
फुर्सत कहाँ
गौरय्या सूखे कंठ लिए
जल के लिए
ची- ची करती रहे
कौन समझे उसकी बोली।
जल पान रखने का
धरा सन्देशा
दे रही इंसानो को
और कह रही
सूरज से
जरा अपनी तपिश को
कम कर लो
तुम सूरज हो
धरा को सूखा
मत बनाओं
क्योकि हरियाली और जल ही
तो मेरी पहचान है।
*संजय वर्मा 'दृष्टि',मनावर जिला -धार (म प्र )
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