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श्रमेव जयते



*धर्मेन्द्र बंम


तुम हो  प्यारे  युग  निर्माता 
वसुंधरा के  तुम  हो  भ्राता 


श्रम से तो न कभी घबराता
श्रम से ही तो सबकुछ पाता 


श्रम ही सेवा  श्रम ही पूजा
श्रम के बिना न कोई  दूजा  


संघर्षों   में   हार  न   माने
श्रम से ही तो जग पहचाने


श्रम की महिमा को पहचानो
श्रम को  ईश्वर  के सम मानो


डगर डगर पर  साथ निभाता
श्रम है सबका भाग्य  विधाता


*धर्मेन्द्र बंम, नागदा, उज्जैन


 


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