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श्रम की क्रांति 



 *अशोक 'आनन'

 

बंद करो तुम धर्म - युद्ध   और  जुट जाओ निर्माण में ।

श्रम के बल पर श्रम की क्रांति ; ला  दो  हिन्दुस्तान में ।

 

श्रम तुम्हारा मोती बनकर  ;

चेहरे पर चम - चम चमके ।

हाथ तुम्हारे रूकें कभी न  ;

जीवन  भर  अब  श्रम  के ।

ग़म भुला दे सारी दुनिया  ;  तुम्हारी  एक  मुस्कान में ।

श्रम के बल पर श्रम की क्रांति ; -------------------------।

 

जब भी तुम्हारा बहा पसीना  ;

खुशियां   ही   तुम  लाए   हो ।

बैठें  जब  भी  हाथ  थामकर  ;

संकट     ही    मॅंडराया     है ।

श्रम की ऐसी चाह जगा दो  ;  भारत के हर इंसान में ।

श्रम के बल पर श्रम की क्रांति ; ----------------------- ।

 

 

व्यर्थ   कभी   न   जाए  शक्ति  ;

सही  -  सही    उत्पादन     हो ।

गंगा जल - सा आज श्रमिकों ;

श्रम     तुम्हारा     पावन    हो ।

श्रम  की  गंगा  तुम  बहा  दो  ;  सारे  रेगिस्तान  में ।

श्रम के बल पर श्रम की क्रांति ; -----------------------।

 

श्रम  की  पूजा  करने  वाले  ;

श्रम   के   तुम   पुजारी   हो ।

भारत  मां  के भाग्य विधाता ;

जय - जयकार   तुम्हारी। हो ।

कमी  कभी न आने पाए  ;  अपने  स्वाभिमान  में ।

श्रम के बल पर श्रम की क्रांति ; ----------------------।

 

*अशोक 'आनन '

 मक्सी,जिला - शाजापुर ( म.प्र.)

 


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