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शराब की बिक्री से सरकार खजाना भरेगी



*सुनील कुमार माथुर 


कोरोना वायरस के संक्रमण से निपटने के लिए सरकार ने लाॅक डाउन किया और लोगों से अपने घरों में ही रहनें की अपील की । लम्बे समय तक जनता ने लाॅक डाउन की पीडा झेली और अब भी झेल रहें चूंकि हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि  सभी को स्वस्थ रखने के लिए लाॅक डाउन के चलते हमने जो परेशानियां झेली वे कोई मायने नहीं रखती है चूंकि स्वास्थ्य प्रथम आवश्यकता है । लेकिन बाद में सरकारों ने अपने-अपने यहां शराब की दुकानें खोलने की छूट देकर अच्छा नहीं किया । शराब की बिक्री कर सरकार अपना राजकोष भरना चाहती है।

यह कैसी विडम्बना है कि एक ओर सरकार स्वंय बडे- बडे विज्ञापन देती है कि शराब स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है और शराब के खिलाफ प्रदर्शनी लगाती है कि आप शराब को नहीं पी रहे है बल्कि शराब आपकों पी रही हैं । सरकार की यह कैसी दौहरी नीति । शराब का नशा करने वाले दुकानें खुलने से पहलें ही लम्बी  - लम्बी कतारों में ऐसे लग गये मानों अमृत बट रहा है । पीने वालों ने कई जगहों पर शराब खरीदने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग की भी खुलकर धज्जियां उडाई तो कई जगहों पर पुलिस ने डंडे भी फटकारे । पीने वालों ने तर्क दिया कि कई दिनों बाद पीने को मिली है इसलिए अधिक पैसे देकर भी खरीद ली। अतः मंहगी मिली तो कोई बात नहीं मिली तो है पीने और पिलाने को । शराब की बिक्री कर सरकार अपनी अर्थव्यवस्था को सुधारेगी और खजाना भरेगी। 

न तो सरकार ने सोचा और न ही जनता-जनार्दन ने सोचा कि यह वक्त है पैसे का कैसे सदुपयोग करें । सरकार लाॅक डाउन के चलते अगर शराब की दुकानें खोलने के बजाय हर गली मौहल्ले में दूध के बूथ अस्थाई खोलती एवं रियायती दर पर गली - गली व मौहल्ले- मौहल्ले में रियायती दर पर सब्जियां उपलब्ध कराती तो शायद लोक कल्याणकारी सरकार कहलाती । मगर शराब की दुकानें खोलकर सरकार ने परिवार के सदस्यों को आर्थिक संकट में डाल दिया चूंकि जो पैसा परिवार के सदस्यों के लिए राशन पानी पर खर्च होना चाहिए वह शराब पीने वालों ने शराब खरीदने में लगा दिया एक तरह से सरकार ने उल्टी गंगा बहा दी।

लोग शराब की दुकानों पर ऐसे टूट पडे मानों उन्हें दूध , रोटी, दवा एवं खाद्यान्न नहीं बल्कि दारू चाहिए । शराब के लिए जो मारामारी मची उसे देखकर लगा कि भारतीय नागरिकों को घर - परिवार की उतनी चिंता नहीं है जितनी शराब की । शराब पीने वाले अगर इन्हीं रुपयों के फल लाकर परिवार के सदस्यों के साथ बैठकर खाते तो परिवार के सभी सदस्य कितना खुश होते । याद रखिये आप दारू को नहीं पी रहे है बल्कि शराब आपकों पी रही हैं। 

 

*सुनील कुमार माथुर,जोधपुर

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