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रचना प्रकाशन के सोलह संस्कार



*प्रो. बी.एल .आच्छा     


रचना प्रसव पीड़ा का उपहार है ।जीवंत है तो संस्कार होंगे ही। यह  मनुस्मृति नहीं , शास्रीय तर्ज पर रचना-प्रसूति के संस्कारों का नामकरण। पुराने हों या सोशल मीडिया के एल्बमी प्रसंस्करण हों।शास्त्रीय भाषा में बिना व्यंग्य -लक्षणा -व्यंजना के।
रचनाधान - लेखक के भीतर एक फ्लैश ,ट्रांसफार्मर उड़ने की सी अंतर्ध्वनि ,फड़कता बिंब और चेहरे की  पुलक।जैसे  मितली के बाद अस्पताल से पॉजिटिव का संकेत ।  भावगर्भ संस्कार -कई दिशाओं में परिंदे उड़ान भरने  लगते हैं ,चोंच में कुछ उड़ेल देते हैं; दर्शन और मसाले ।शिराओं में झनझनाहट ,सोते हुए जागते सपने ।शब्दप्राशन संस्कार -अन्नप्राशन की तरह भाव का शब्दप्राशन ।ये ही कला के तीन क्षण ।भाव -संवेदना से शब्द -संवेदना की रचनाप्रक्रिया ।


पाठक -श्रवण संस्कार- पत्नी मित्र या किसी रचनाकार के समक्ष पाठ। सुनाते ही पूछ लेते हैं ,मालवी मानुष की तरह-कैसे बने लड्डू -बाफले ।


पत्र-पत्रिकार्थ प्रेषण संस्कार -फेसबुक पर नये व्यंग्य के शुरुआती  सौ शब्द ... और संभव हो तो अनुबंधित पत्रिका का नाम या उपन्यास के दस हजार शब्द लिख लेने की सूचना ।और रचना ई-मेल से  अनछपे रहने तक फिर फिर  ईमेल।


गोष्ठी -सुनावन संस्कार- रचनाकार  द्वारा आतुरता से  टटकी ताजी कली बता कर रचना पाठ और वाह वाह के लिए कातर नयन और श्रवण ।


आकाशवाणी -दूरदर्शन- प्रदर्शन संस्कार -आकाशवाणी केंद्र पर रिकॉर्डिंग के पहले चित्र खिंचवाकर  फेसबुक पर दुर्लभ अनिर्वचनीय क्षणों का फेसबुक पोस्टिंग।


भूमिका लिखावन संस्कार -पुस्तक की भूमिका और फ्लैप किसी पुरस्काराना कदकाठी वाले, अकादमिक पुरुष ,साहित्यिक राजनेता  या पहुँच वाले नामवर व्यक्तित्व के दो शब्द ।


पुस्तक-छपावन संस्कार- फेसबुक पर अनुबंध... बधाई ..बधाई, कवर ग्राफिक्स ...सुंदर ..सुंदर..., पुस्तक प्रकाशित ....वाह वा... बधाई.. बधाई ।संतानोत्पत्ति का  सा बधावन संस्कार।


विमोचन -लोकार्पण संस्कार- सदाबहार अतिथि से ,जो अखबार की सुर्खी बन जाए ।नरमदिल समीक्षक, जो सूरजमुखी की तरह किताबमुखी-लेखकमुखी हो ।अखबारों में सचित्र प्रकाशन के जुगाड़ ।सोशल मीडिया पर इस  वैश्विक घटना का  ताबड़तोड़ सचित्र समाचार। जैसे चंद्रयान दो धरती की कक्षा पार कर गया हो ।कुछेक का मत  है-अनाम पाठक पढ़ ले तो स्वयमेव विमोचन ।पर घोड़े पर बैठकर बिंदोली के बगैर  कैसी शादी ?


समीक्षा- लिखावन संस्कार- अपने ही लक्ष्मीयुक्त रक्तचंदन से छपी पुस्तकों का पत्रिकाओं को  समीक्षार्थ प्रेषण। प्राप्त समीक्षा पुस्तक सहित इमेल। प्रकाशित होते ही फेसबुक पर।  बधाइयों की भ्रमर गुंजन।


अर्ध-मूल्यपावन संस्कार- विमोचन के दिन आधे मूल्य पर पुस्तक- विक्रय, श्रोताओं के संकोच से जुड़ी विक्रय कला।


बधाईपावन संस्कार- सोशल मीडिया पर ,इंस्टाग्राम -फेसबुक व्हाट्सएप समूहों में चित्रात्मक रपट। प्रशंसा ,बधाई ग्रहण और सामूहिक या व्यक्तिशःआभार ।इतनी कि गूगल भी बधाइयों से मितलाने लगे।


पुस्तक पहुँचावन संस्कार -जैसे विवाह के बाद लड्डू घर -घर ,वैसे ही किताबें मित्रों लेखकों को हाथों-हाथ या रजिस्टर्ड।


कोर्स लगावन संस्कार- सधे लेखक और प्रकाशक द्वारा रचना को पाठ्यक्रम में लगाने की जुगाड़ -तकनीक ।


पुरस्कार हथियावन संस्कार - अकादमियों- संस्थानों ,निजी प्रतिष्ठानों की विज्ञप्ति और प्रविष्टियाँ।पुरस्कार के लिए  कद-काठी वाले के साथ पर-जन्य यज्ञ। यों छोटी मोटी संस्थाओं  के पुरस्कारों पर चौकस नजर।


प्रिय पाठक! ये सोलह संस्कार अनुभवजन्य हैं। अंतिम भी नहीं। अलबत्ता रचना को अक्षर ब्रह्म मानते हुए पुरस्कार के बाद के संस्कारों को विराम दे दिया है।संस्कारों के नामकरण की भाषा संशोधनाधीन है। 


*प्रो. बी.एल .आच्छा ,चेन्नई (तमिलनाडु)


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