भारतीय साहित्य के इतिहास ऐसे कई साहित्यकार हुए हैं जिनके उत्कृष्ट साहित्य और कृतित्व का मूल्यांकन उतना नहीं हुआ जिसके कि वे हकदार थे ,परंतु मूर्धन्य विद्वान अपना अलग स्थान बना ही लेते हैं, ऐसे ही उदाहरण हमारी मातृभाषा संस्कृत के उच्च कोटि के विद्वान डॉ देवव्रत दीक्षित जी भी थे।
डॉ दीक्षित का जन्म वैशाख मास शुक्ल पक्ष तेरस सन 1921 दिनांक 19 मई को जनपद लखीमपुर खीरी के ग्राम परसेहरा मदारपुर में एक चतुर्मुखी प्रतिभा संपन्न शिक्षक के घर में हुआ था। उनके पिता पंडित पुत्तू लाल दीक्षित एक कर्तव्यनिष्ठ और देशभक्त अध्यापक थे तथा माता श्रीमती भगवती देवी एक धर्मपारायण महिला थीं । ये दो भाई व दो बहन थे इनके भाई बहन के नाम श्री वेदव्रत दीक्षित व बहन श्रीमती सुशीला मिश्रा हैं। इनके पिता ने भीष्म पितामह के उपनाम देवव्रत के आधार पर इनका नाम भी देवव्रत रखा । देवव्रत भीष्म पितामह की तरह वह भी अपनी प्रतिज्ञा के पक्के थे । डा दीक्षित जी ने नित्य 100 शिखरिणी श्लोकों की रचना कर एक अनुपम मापदंड स्थापित किया था । संस्कृत श्लोकों की रचना उनके लिए सरल ही था। तमाम मानवीय गुणों से युक्त डा दीक्षित बचपन से ही पितृ भक्त ,कर्तव्यनिष्ठ और मेधावी थे। इनके पिता प्राइमरी विद्यालय के प्राध्यापक थे ₹30 वेतन पाने के बावजूद अपने पुत्र की साहित्य में अभिरुचि और प्रतिभा को देखकर इनको संस्कृत में उच्च शिक्षा दिलवायी । डॉक्टर दीक्षित स्वाध्यायी प्रकृति के साथ-साथ अपने गुरुजनों का आदर करने वाले भी थे ।
उन दिनों भारत माता गुलामी की जंजीरों में जकड़ी हुई थी ,उन्हें गुलामी की त्रासदी से मुक्ति दिलाने हेतु गांधीजी व नेहरू जी के नेतृत्व में देश के तमाम नौजवान सत्याग्रह आंदोलन मे भाग ले रहे थे, उनमें से डॉक्टर दीक्षित भी एक थे। देशभक्ति का पाठ उनको विरासत में मिला वह अपने पिता से प्रेरणा लेकर मेडिकल कालेज की पढ़ाई छोड़कर ,अपनी नयी नवेली अति सुन्दरी पत्नी श्रीमती प्रभावती दीक्षित को छोड़कर ,स्वतंत्रता संग्राम में 19 वर्षों की आयु मे ही सत्याग्रह आंदोलन में कूद पड़े। इनके पिता ने सत्यनारायण की कथा कराकर गाजे बाजे के साथ , अंग्रेज सरकार के विरुद्ध आंदोलन मे उतार दिया, उनकी मां ने आंचल का दूध पिला कर ,बहन ने इनके माथे पर तिलक लगाकर ,क्रांति की ज्वाला में भेज दिया। 15 मई को सन 41 को जेल भेज दिये गये। जेल मे अंग्रेज सरकार द्वारा तमाम शारीरिक यातनाएं मिलती रही,जेल मे अंग्रेज सरकार क्रांतिकारियों को कोड़ो से मारती थी उस पर नमक का छिड़काव भी करती थी ,ताकि हारकर माफी मांग लें ,ये सारी प्रताड़ना डॉ दीक्षित को भी दी गयी ,उनका घर अंग्रेज सरकार ने खोद कर नमक बो दिया । पिता को सरकारी नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया फिर भी उन्होंने अंग्रेज सरकार के आगे घुटने नही टेके , न माफी मांगी और स्वतंत्रता की बलिवेदी पर डटे रहे उन्होंने देश के लिए अपना शानदार कैरियर व घर दोनो ही दाँव पर लगा दिये थे ।देश आजाद होने के बाद जेल से छूटने पर उन्होनें अपनी अधूरी पढ़ाई पूरी की ।
पीलीभीत आयुर्वेद कालेज से मेडिकल की परीक्षा प्रथम श्रेणी में स्कॉलरशिप से सम्मानित होकर उतीर्ण की । लखीमपुर में ही कफारा में 20 वर्षों तक शासकीय चिकित्सक के पद पर कार्यरत रहे । रिटायरमेंट के बाद भी गरीबों की सहयोगीभाव से मुफ्त चिकित्सा करते रहे ।
डा दीक्षित विद्यार्थी जीवन से लेकर अंत तक साहित्य से जुड़े रहे ।लेखन शक्ति भी उन्हें विरासत में मिली थी ।उन्होंने किसी भी पारिवारिक व सामाजिक विघ्न को अपने साहित्यिक प्रेम में आड़े नहीं आने दिया ।इनका जीवन काफी संघर्षपूर्ण रहा ।जीवन के उतार-चढ़ाव को बराबर से देखने वाले स्वयं की तुलना महाराणा प्रताप से किया करते थे । डॉक्टर साहब , मां सरस्वती के चरणों में सदैव समर्पित रहे ।संस्कृत ,हिंदी, उर्दू में कई ग्रंथ लिखे हैं ।
मूल मोहनायनम ,जय सन्तोषी माँ ,राष्ट्रीय आवाह्न ,ओजस्विनी उनकी प्रकाशित काव्य कृतियां हैं ।प्रकृति प्रेमी, देश भक्त, स्वभाव से शौर्यवान व धार्मिक प्रवृत्ति के कारण उनकी रचनाएं भी इन्ही विशेषताओं से प्रभावित रही है । कई पुस्तकें हिंदी उर्दू और संस्कृत में कई अप्रकाशित ग्रंथ भी हैं। हिंदी में देवव्रत गीतांजलि ,आर्य नारी बलिदान ,लोकविजयाभिनंदनम, राजनीतिक भ्रष्टाचार ,बाल कहानी संग्रह आदि की अप्रकाशित काव्य संग्रह हैं ।उर्दू में भी कई काव्य हैं ,तथा संस्कृत साहित्य में शिखरिणी रामायण नामक महाकाव्य लिखी है जिसमे 7000 शिखरिणी श्लोक हैं यह अपने आप मे अत्यंत दुर्लभ ग्रन्थ है यह रामायण उनकी अटूट साधना और समर्पण का प्रतिफल है, जिसे 1 वर्ष पूरा करने के ठीक 2 दिन बाद इस संसार सागर से विदाई ली । रामायण के अतिरिक्त संस्कृत भाषा में देव्यष्टकम ,सत्यनारायण व्रत कथा ,पर्यावरणम आदि पुस्तकें अभी अप्रकाशित है । डा दीक्षित प्रतिमाह आकशवाणी लखनऊ मे अपना संस्कृत काव्यपाठ प्रस्तुत करते थे ।उनको जीवन काल मे साहित्य के क्षेत्र मे व देश भक्ति हित अनेको सम्मान पत्र व उपहार प्राप्त हुए । तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी से ताम्र पत्र व श्री राजीव गांधी से सम्मानपत्र प्राप्त किया व गोवा के राज्यपाल से सम्मानपत्र प्राप्त किया ।डा दीक्षित दो पुत्रों व चार पुत्रियों के पिता थे ।इनकी सन्ताने श्रीमती उषा , कु आशा ,श्री मृत्युंजय ,श्री शत्रुंजय ,श्रीमती सुषमा,श्रीमती रश्मि हैं।
संस्कृत के प्रकांड विद्वान डॉ देवव्रत दीक्षित 7 अगस्त 1994 को हार्टअटैक के परिणाम स्वरूप संसार को अपना अनमोल साहित्य प्रदान कर परमात्मा में विलीन हो गए। परन्तु उनका अनमोल साहित्य समाज के लिए अनमोल धरोहर के रूप मे मौजूद रहेगा एवं उनकी पावन स्मृतियां भी ।
*सुषमा दिक्षित शुक्ला
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