*प्रो.शरद नारायण खरे
पत्नी-बच्चे,मात-पित,बहनों से संसार ।
बंधु बांधव,यदि नहीं,तो कुछ भी ना सार ।।
सब रहते यदि प्रेम से,तो है चोखी बात ।
पर यदि कटुता है भरी,तो जीवन पर घात।।
नेह,समर्पण से बने,प्रियवर मीठी बात ।
भाव भरे मीठे ह्रदय,तो सचमुच सौगात ।।
एकाकीपन है कहर,बहुत बड़ा अभिशाप ।
आओ मिलकर के रहें,प्रियवर मैं औ' आप ।।
हर मुश्किल में हौसला,देता है परिवार ।
सब नेहिलता से रहो,यह चोखा उपहार ।।
बिन परिजन ना घर बने,खाली रहे मकान ।
जब घर 'घर' बनता 'शरद',तब बढ़ती है शान ।।
परिवारों की बात है,संस्कारमय गीत ।
अपनेपन से ही बढ़े,परिवारों में प्रीत ।।
आओ,हम वंदन करें,पालें बस यह भाव ।
हर दिल में परिवार प्रति,हो अपनापन-ताव ।।
*प्रो.शरद नारायण खरे,मंडला(म प्र)
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