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मीरा सिंह 'मीरा' की कविताएँ



 

ऐ मानव संभल
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ए मानव संभल
घर से बाहर
मत निकल
एक अदृश्य दुश्मन
मद में रहा मचल
थाहने चला है
मनुज का आत्मबल
कल छल बल में
है वह प्रबल
क्षण क्षण रहा
अपना रूप बदल
कर रहा घात
छिपकर प्रतिपल
ऐ मानव संभल
घर से बाहर
मत निकाल।


जीतेंगे हम
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चीरकर अंधेरे
बढ़ चले कदम
दुश्मन की होगी हार
बाजी जीतेंगे हम
रुकेंगे नहीं अब
बढ़ते हुए कदम
कामयाब होंगे
हौसलों के दम
अंधेरे पर जीत का
लहराएंगे परचम
पराभूत होगा दुश्मन
  खाते हैं कसम
संकल्पित मन से
एकजुट रहेंगे
लाकडाउन रहेंगे
मन से अमल करेंगे
जीत ही जाएंगे
कोरोना संग जंग
चीरकर अंधेरे
बढ़ चले कदम।

 

 


वापस नहीं आएंगे
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हमारे पांव के छाले
बेशक भर जाएंगे
पर दिल के छाले
भर नहीं पाएंगे
सच कहते हैं हम
तुम्हारे शहर में अब
वापस नहीं आएंगे
देखा लिया हमने
तुम्हारे चेहरे के पीछे
छिपा वीभत्स चेहरा
स्वार्थ की पट्टी बांधे

तुम्हारे अंदर का
इंसान गूंगा बहरा
ना मानवता है तुममें
न तनिक शर्मोहया
कड़ुवे स्मृतियों का
बियाबान लिए हम 
जा रहे अपने गांव 

अपनी माटी में

रच बस जाएंगे 

अपनों के साथ ही 

जिन्दगी बिताएंगे 

तुम्हारी नजरे कल

फिर हमें तलाशेंगी

हम नजर नही आएंगे

रूखी सुखी खाकर 

कैसे भी रह लेंगे 
तुम्हारे शहर में
वापस नहीं आएंगे।

*मीरा सिंह "मीरा",डुमरांव,जिला- बक्सर 


 

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