*शिव कुमार दुबे
मजदूर मजबूर है
बहाकर पसीना
करता है श्रम
बनाता है महल
सवा
सवारता है खेत
और खलियान
बांधता है क्यारियां
चलाता है हल
जीवन की नियति है श्रम
श्रममेव जयते है जीवन
फिर भी अभाव में
रहता है मजदूर
भागता है दौड़ता है
हफ़ता है परेशानी ही
परेशानी में गुजार देता
जीवन न खुशियो से सरोकार
केवल गम ही है उसके पास
हमको देना होगा
उसके हिस्से की खुसी
उसके हिस्से का प्यार
मर जाता है मजदुर
बगैर कोई समाचार के
न कोई सुर्खी न कोई
प्रचार बस करता है
श्रम मजदुर मजबूर
*शिव कुमार दुबे,इंदौर (म.प्र.)
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