*सरिता सरस
मैंने देखा है...
जमता हुआ इश्क़
और
पिघलता हुआ इश्क़
और
इसके बीच
टूटती हुई एक महीन रेखा...
देखा है....
पुरुष होता हुआ इश्क़
और
स्त्री होता हुआ इश्क़
और ..
उसके बीच
अर्द्धनारीश्वर होता हुआ एक भाव.....
महसूस किया है....
फ़िराक़ के वक्त
आंख में रक्त- सा
जमता हुआ इश्क़....
देखा है.....
नदी में डूबता हुआ इश्क़
और
सागर में तैरता हुआ इश्क़
और,
उसके बीच
झरने सा बहता हुआ आनन्द
देखा है मैंने....
कबीर होता हुआ इश्क़
और
बुद्ध होता हुआ इश्क़..
न जाने कितने रूपों में तुझे
ऐ इश्क़...!!
महसूस किया है मैंने।
जब लगा कर तुम्हें सीने
से
पूरा अस्तित्व झूम उठा ..
मुझे एहसास हुआ!
इश्क़ को हर रूप में चाहिए,
बस इश्क़ .......
*सरिता सरस,गोरखपुर, उत्तर प्रदेश
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