*डॉ. अनिता सिंह
मैं और मेरी माँ का रिश्ता अटूट ।
जिसमें नहीं कोई डाल सकता फूट।
माँ की ममता का मीठा अहसास ।
कर जाता मुझे हरदम उदास ।
काश मैं बाँट सकती माँ का दर्द ।
दुखों को उठा लेती बनकर हमदर्द।
समझा पाती सबको उनकी पीड़ा ।
उनके अरमानों को देती कोई दिशा।
उनके चेहरे पर ला सकती खुशियाँ ।
बनकर उनकी अच्छी बिटिया ।
तमन्ना है मेरी हर रात हो उनकी दिवाली ।
हर दिन में हो होली की गुलाली ।
हर शाम हो उनकी सुरमई ।
हर सुबह हो उनकी सतरंगी ।
मैं और मेरी माँ रहते हरदम साथ ।
उनके हाथों में रहता सदैव मेरा हाथ ।
*डॉ. अनिता सिंह,बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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