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मात्रिक छंद पर्व का आयोजन



जबलपुर ।  विश्ववाणी हिंदी संसथान अभियान जबलपुर का 22वाँ दैनंदिन सारस्वत अनुष्ठान "मात्रिक छंद पर्व'' में पहने की आसंदी पर पलामू झारखण्ड से पधारे छंद शास्त्री श्री श्रीधर प्रसाद द्विवेदी तथा  आसंदी पर संस्कारधानी जबलपुर के चर्चित समीक्षक इंजी सुरेंद्र सिंह पवार सुशोभित हुए। सरस्वती वंदना  प्रस्तुति इंजी. उदयभानु तिवारी कटनी ने की। 

हे हंसवाहिनी सरस्वती!

हम करते माँ तेरा वंदन 

कर ज्योति प्रज्वलित सुमन लिए 

कर रहे तुम्हारा अभिनन्दन 

तदोपरांत हिंदी महिमा के सोरठे मीनाक्षी शर्मा 'तारिका'  ने प्रस्तुत कर  सिक्त कर दिया। 

हिंदी मोतीचूर, मुँह में लड्डू सी घुले 

जो पहले था दूर, मन से मन खुश हो मिले 

हिंदी कोयल कूक, कानों को लगती भली 

जी में उठती हूक कानों में मिसरी घुले 

मात्रिक-वर्णिक छंद हिंदी की है खासियत 

ज्योतित सूरज-चंद, बिसराकर, खो मान मत   

विषय प्रवर्तन करते हुए संयोजक-संचालक आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' ने छंदों का उद्भव प्रकृति से बताते हुए वाचिक छंदों के जन्म पर प्रकाश डाला। विद्वान वक्त ने छंदों को वेदों का चरण कहे जाने  और छंदों के वर्गीकरण की चर्चा की। टीकमगढ़ से सहभागी हो रहे साहित्यकार राजीव नामदेव राना लिघौरी ने छत्रसाल जयन्ती पर बुंदेली में दोहांजलि अर्पित की-

महाराज छत्रसाल की, चली ऐन तलवार 

बिजुरी सी चके मनो, बहे खून की धार 

सर्वाधिक लोकप्रिय छंद दोहा प्रस्तुत किया सपना सराफ, डॉ. भावना दीक्षित, इंजी अरुण तिवारी, डॉ. संतोष शुक्ल तथा इंजी अवधेश सक्सेना शिवपुरी ने। सपना सराफ ने वर्षा काल में साजन की बात जोहती विरहिन की पीर उद्घाटित की -

बारिश छाई श्याम मुख, विरहिन  छोड़े श्वास 

राह तके नैना थके, पिया मिलन की आस

मीना  भट्ट जी ने सरसी छंद में सरस गीत प्रस्तुत किया- 

करती मोहित मुझको प्रीतम, पायल की झनकार 

घुँघरू की झमझम में डूबा, देख सकल संसार 

जबलपुर के सशक्त कवि अभय तिवारी ने सुंदर सरस् दोहे प्रस्तुत कर कानों में अमृत घोल दिया-

नैंनों में तुम तिर रहीं, जैसे जल में नाव 

प्राणों को तुमसे मिले, मीरा जैसे भाव 

भिंड से पधारी मनोरमा जैन 'पाखी' ने प्रधान मंत्री की अपील के बाद भी मजदूरों को मजदूरी न देकर पलायन हेतु विवशकरने, और घाटे का झूठा रोना रोकर रियायत मान रहे उद्योगपतियों पर सार छंद में करारा व्यंग्य किया-

छन्न पकैया छंद पकैया, छन्न बजता पैसा 

तेरी गुल्लक खूब भरी है, फिर रोना ये कैसा? 

कोरोना कालीन प्रतिबंदों के कारण जन सामान्य की परेशनियों का उल्लेख करते हुए अवदेश सक्सेना ने दोहे पढ़े -

शादी अब कैसे करें, वर कन्या से दूर 

परमिशन मिलती नहीं, दोनों हैं मजबूर 

डॉ. मुकुल तिवारी ने मानस में प्रयुक्त छंद प्रस्तुत किये। पलामू झारखण्ड के प्रो. आलोकरंजन ने कबीर के दोहे प्रस्तुत किये। प्रसिद्ध कवयित्री व संपादक छाया सक्सेना ने भी सरसी छंद में पर्यावरण चेतना जगाते  गीत की प्रस्तुति दी- 

उदित सूर्य आकाश लाल है, हुआ सवेरा जान 

एक सुखद संदेश लिए मन गढ्ता नव प्रतिमान 

बाग़ बगीचे सुरभित सुरभित फूलों सी मुस्कान 

हर कलियाँ गुंजित हो कहतीं पेड़ धरा की शान  

मीनाक्षी शर्मा तारिका ने आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' द्वारा सुमेरु छंद का प्रयोग कर  रचा गया गीत भरी करतल ध्वनि के बीच सस्वर प्रस्तुत किया- 

'आदमी को देवता, मत मानिए 

आँख पर अपनी न पट्टी बाँधिए 

स्वच्छ मन-दर्पण हमेश यदि न हो-

बदन की दीवार पर मत टाँगिए 

लक्ष्य वरना आप है ।

भीलवाड़ा राजस्थान की पुनीता भारद्वाज ने मदिरा सवैया सस्वर प्रस्तुत कर सराहना पाई-

भाव भरा घाट हाथ लिए तव, द्वार चले अब आय रही 

थाल सजे उर फूल सुगंधित, श्रद्धहि दीप जलाय रही 

भक्ति भरे उर में तव शारद, ज्ञान गुहार लगा य रही 

मातु दया कर पूरहु आस, व्यथा निज आज सुनाय रही 

आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' ने उल्लाला छंद में गीत प्रस्तुत कर अभिनव प्रयोग प्रस्तुतकिया 

बाँका राँझा-हीर सा,
बुद्ध-सुजाता-खीर सा,
हर उर-वेधी तीर सा-
बृज के चपल अहीर सा.
अनुरागी निष्काम है
जीवन सुख का धाम है

ओजयुक्त टंडाव छंद की प्रस्तुति कर सलिल जी ने श्रोताओं को मुग्ध कर दिया -

।। जय-जय-जय शिव शंकर । भव हरिए अभ्यंकर ।।

।। जगत्पिता श्वासा सम । जगननी आशा मम ।।

।। विघ्नेश्वर हरें कष्ट । कार्तिकेय करें पुष्ट ।।

।। अनथक अनहद निनाद । सुना प्रभो करो शाद।।

।। नंदी भव-बाधा हर। करो अभय डमरूधर।।

।। पल में हर तीन शूल। क्षमा करें देव भूल।।

।। अरि नाशें प्रलयंकर। दूर करें शंका हर।।

।। लख ताण्डव दशकंधर। विनत वदन चकितातुर।।

ग्वालियर से पधारी संतोष शुक्ल ने किसानों की व्यथा-कथा दोहे में कही- 

बिना सलिल सूखी धरा, लगा गगन से आस 

बादल तो बरसे नहीं, कौन बुझाये प्यास 

इंजी. अरुण भटनागर ने वैराग्यपरक दोहे प्रस्तुत करते हुए आपके काव्य गुरु सलिल जी को प्रणति निवेदन किया- 

प्रेम भक्ति अरु ध्यान फल, ईश मिलन सुख मूल 

तृष्णा ईर्ष्या वासना, क्लेश-कष्ट के मूल 

डॉ. भावना दीक्षित ने दोहा छंद संबंधित जानकारी साझा कर दोहे सुनाये -

ठंडी पुरवा चल रही, सूर्य न झाँका भोर 

बरसा रानी अलसुबह, बरसी चारों ओर

कार्यक्रम की उद्घोषक, दमोह की प्रसिद्ध लघुकथाकार बबीता चौबे 'शक्ति' ने हरितालिका छन्द की मनोहर प्रस्तुति दी -

जय जय हितकारी अवधबिहारी चंद्र रूप भगवंता 

दुःख-दारिदहारी हे  अवधबिहारी गुण गावहिं श्रुति संता 

संग सीतामाता  लछमन भ्राता भक्त परम हनुमंता 
हे कर धनुधारी मंगलकारी आदि-अनादि अनंता राष्ट्रपति पुरस्कृत शिक्षक सुश्री चन्द्रा स्वर्णकार जी ने छंद रचना प्रक्रिया पर अपने विचार व्यक्त किये।  मीनाक्षी शर्मा 'तारिका' ने सुमेरु छंद में अपने काव्य गुरु सलिल जी रचित सरस गीत प्रस्तुत किया -

आदमी को देवता मत मानिए 
आँख पर अपनी न पट्टी बाँधिए 
स्वच्छ मन दर्पण हमेशा यदि न हो 
बदन की दीवार पर मत टाँगिए पलामू से पधारे छन्दाचार्य श्रीधर प्रसाद द्विवेदी जी ने छप्पय छंद में कोरोना से उपजी त्रासदी का वर्णन किया। कुण्डलिया छंद का विधान श्रीधर जी ने कुण्डलिया में ही बताया।  लावणी छंद में आपने ग्रामीण क्षेत्र में शिक्षा की दुर्दशा का चित्रण किया गया। आल्हा (वीर) छंद में भी श्रीधर जी ने कोरोना त्रासदी का जीवंत शब्द चित्र प्रस्तुत किया-  
छूट रहा है धैर्य श्रमिक का, जो मजदूर गए प्रदेश 

कोरोना के विषम काल में, सह सह काटे विषम कलेश 

पाहुना की आसंदी से श्रीधर जी ने प्रत्येक प्रस्तुति की सम्यक समीक्षा की। विश्ववाणी हिंदी संस्थान द्वारा प्रस्तुत इस अनुष्ठान की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए अध्यक्ष सुरेंद्र सिंह पवार ने संयोजक सलिल जी की कर्मठता को सराहते हुए इसकी निरन्तरता की कामना की।  पवार जी ने स्वरचित दोहे सुनाये - 
मंडप में बैठी रही, रेवा जोड़े हाथ 
छली सोन लौटा नहीं, गया जोहिला साथ 
संगमरमरी सुगढ़ता नहीं विश्व में और 
युवा नर्मदा नाचती, पाकर सुदृढ़ ठौर 
अनुजा बंजर से मिली रेवा भुजा पसार 
झुकी लगी मिलने गले रोक न पाया प्यार डॉ. अलोकरंजन द्वारा आभार प्रदर्शन के साथ कार्यक्रम समाप्त हुआ।

 

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