*प्रेम बजाज
मां तुम बिन कोई नहीं लोरी सुनाता,
ना कोई चूरी कूट खिलाता
कोई नहीं जो जाते समय ससुराल
चुपके से मुठ्ठी में नोट थमाता ।
कोई नहीं जो तकलीफ़ होने पर
लगा कर सीने से ढांढस बंधाता
जब होती तबीयत ख़राब कोई नहीं
जो रात भर जाग मेरा माथा सहलाता ।
झूठ और सच में फ़ासला क्या है
मां तुम बिन कोई नहीं समझाता
भूखी हूं या भरा पेट है
तुम बिन कोई भी ना पूछने आता ।
डर जाती हूं कभी जीवन के अंधेरों से
कोई ना हिम्मत देने आता
खाती हूं रोज़ धोखे दुनियावी रिश्तों से
कोई ना दुनियादारी समझाता ।
कैसे जीऊं मां तुम बिन मैं
तेरा सपना भी तो नहीं अब आता
मां ग़र तुम बुलाओ तो
ईश्वर भी धरती पे उतर आता ।
मां तो मां होती है यारों
मां जैसा दुनिया में कोई कहां बन पाता ।
*प्रेम बजाज, जगाधरी (यमुनानगर)
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