*मीरा सिंह 'मीरा'
सिर पर जब छत नहीं था
मां छत जैसी लगती थी ।
अपने प्यार के आंचल से
अक्सर मुझको ढक लेती थी ।
गम से जब व्याकुल होकर
मां के पास मैं जाती थी
अपनी बाहों में भरकर मां
दुख दर्द सब हर लेती थी।
मां जब तक मेरे साथ रही
मैं हरपल खुश रहती थी
ममतामयी उसकी आंखें
उम्मीद से रोशन रहती थी।
मां क्या दूर गई दुनिया से
मन तन्हा तन्हा रहता है
खुशियों का हर मौसम
फीका फीका सा लगता है।
हर सूरत में मां की सूरत
मुझको नजर आती है
आए गए कितने ही मौसम
मां तू क्यों नहीं आती है?
*मीरा सिंह "मीरा", डुमरांव,
जिला -बक्सर ,बिहार
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