*आशु द्विवेदी
कुछ भूल तो हुई है!
हम मानव जाति से।
यूँ ही नहीं रूठी है!
प्रकृति हम इंसानो से।
हर तरफ छाया सन्नाटा है!
जाने वक्त ये कैसा आया है।
एक रोग से अब तक!
विज्ञान भी जीत ना पाया है ।
लाख कोशिशों के बाद भी!
खत्म होती नहीं ये बीमारी है।
हर रोज मरीजों की
संख्या बढ़ती जाती है।
पूरे विश्व में बस
तबाही इसने मचाई है
जब से ये महामारी
दुनिया में आई है।
जाने कीस अपराध के कारण!
कुदरत ने केहर अपना बरसाया है।
मानव जीवन को
देखो अस्त व्यस्त कर डाला है।
*सोनिया विहार दिल्ली
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