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कोरोना : उज्जैन है देश में सबसे अधिक मृत्यु दर वाला जिला


उज्जैन में तीव्र मृत्युदर का जिम्मेदार कौन ?



*संदीप कुलश्रेष्ठ


दो चरणों में पांच सप्ताह के लॉक डाउन के बाद आइये हम लेते हैं, उज्जैन की हालत का जायजा ।
आज महाकाल की नगरी उज्जैन  देश का ऐसा शहर और जिला बन गया है , जहाँ मरीजों की मृत्यु दर देश भर में सबसे अधिक है । जी हाँ, 20.38 प्रतिशत । उज्जैन जिले में 3 मई तक कुल संक्रमितों की संख्या 157 है । इस दिनांक तक कुल 32 लोगों की मृत्यु हो गई है । हमारे प्रदेश में कुल संक्रमित 2880 है । कुल मृत्यु 157 की हुई है । इसकी मृत्यु दर 5. 45 प्रतिशत  है। हमारे देश में कुल संक्रमित 41779 है । उक्त तारीख तक कुल मृत्यु 1391 की हुई है । इसका प्रतिशत 3. 32 आता है । उज्जैन की इस दुरावस्था के लिए  जिला प्रशासन की कुव्यवस्था ही जिम्मेदार है ! अगर प्रशासन कहता है कि हम पूरी सजगता के साथ काम कर रहे है तो उपरोक्त अत्यधिक मृत्यु के आंकड़ो की जिम्मेदारी किसकी होगी ? उज्जैन की दुरावस्था के लिए प्रशासन ही जिम्मेदार है। अगर समस्त व्यवस्थाएं जिला प्रशासन के हाथ में है तो जिम्मेदार भी वही है।


दो सप्ताह में आ रही है रिपोर्ट- प्रशासन की ये कैसी व्यवस्था ?
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उज्जैन शहर के जानसापुरा में हुई पहली मौत से ही जिला प्रशासन को जग जाना था, किन्तु वह नही जगा । वो अगर जाग जाता तो शायद ऐसी स्थितियां निर्मित नहीं होती। इसका परिणाम ये हुआ कि एक के बाद एक मोहल्लों से कोरोना के मरीजों की संख्या के साथ साथ मौतों का आंकड़ा भी बढ़ता गया । किन्तु तेज गति से रिपोर्ट आये इस दिशा में जिला प्रशासन ने जितनी  गंभीरता दिखानी थी वह उसने नहीं दिखाई। ध्यान रखने वाली बात ये थी कि दिल्ली के बाद प्रदेश में सबसे पहले उज्जैन में ही मुस्लिम महिलाएं और पुरुष काफी संख्या में धरने  बैठें थे । ये धरना काफी  लंबा चला था । उज्जैन में पहली मौत राबिया बी की हुई थी, वह धरने में शामिल थी । इसके बावजूद जिला प्रशासन द्वारा मुस्लिम मोहल्लों  में सघन जांच अभियान शुरू नहीं किया । प्रशासन को कोरोना संक्रमण की शुरुआत में ही चलाना था सघन जांच अभियान । पर वो नहीं चलाया गया । इसके कारण तेजी से कोरोना फैला । इसकी गंभीरता पर जिला प्रशासन ने कभी भी ध्यान ही नहीं  दिया । इसका दुष्परिणाम आज हम सबके सामने हैं । अब हम इस सबके लिए किसे जिम्मेदार ठहराए ?


व्यवस्था को तुरंत सुधारें-अव्यवस्थाओं का दोष किसके सिर पर ?
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उज्जैन के आरडी गार्डी अस्पताल की समस्त व्यवस्था  प्रशासन के हाथों में है तो वहां पर हो रही अव्यवस्थाओं का दोष किसके सिर मड़ा जाए ? जिला प्रशासन ने दो सप्ताह पूर्व ही अपना प्रशासक नियुक्त कर दिया था उसके बाद भी व्यवस्थाएं जस की तस है ये भाजपा के पार्षद का वीडियो बताता है  मुजफ्फर हुसैन साफ शब्दों में अव्यवस्था का मुद्दा कह रहे कि एक बार गार्डी हॉस्पिटल का दौरा कर लीजिए ।  3 मई को उन्ही पार्षद  मुज्जफर हुसैन की कोरोना से दुःखद मौत हो गई । मौत के पहले उन्होंने जो  अपने एक वीडिओ में  कलेक्टर से अनुरोध किया कि वह आर डी गार्डी हॉस्पिटल में भर्ती है । यहाँ मरीजों के लिए  कुछ भी व्यवस्था नहीं है । यह प्रमाण पर्याप्त नही है की प्रशासन का व्यक्ति होते  हुए भी वहां क्या चल रहा था । इतना ही नहीं उज्जैन की जागरूक मीडिया रोज आर डी गार्डी हॉस्पिटल की कुव्यवस्था को छाप रही है, किन्तु जिला प्रशासन ने कोई भी सख्त कदम नहीं उठाया। इस कारण ये अस्पताल इलाज का नहीं,  बल्कि मौत का अड्डा बन गया । आरडी गार्डी अस्पताल में लापरवाही के चलते कई मौते हो चुकी है उसके बाद भी अस्पताल प्रशासन के विरुद्ध कोई कड़ा निर्णय नही लिया गया क्यो ? इसका जिम्मेदार किसे ठहराया जाना चाहिए।


आखिर क्यों लगाना पड़ी स्वास्थ्यकर्मियों को  साधनों की कमी की गुहार ?
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गत 24 अप्रैल को उज्जैन के समस्त स्वास्थ्यकर्मियों और डॉक्टर्स ने प्रशासन से इलाज में पर्याप्त साधनों  की मांग करते हुए कई अव्यवस्थाओं के आरोप लगाएं थे। तो प्रशासन ने उनकी सभी मांगे मानते हुए उनकी सुरक्षा की जवाबदारी ली थी। तो 24 मार्च  से अगर प्रशासन ने व्यवस्थाएं सम्भाल ली थी। तो एक माह बाद ये स्थिति क्यों हैं ? प्रशासन ने डाॅक्टरों को सिर्फ डराने को काम किया । डरे हुए डाॅक्टर इतने दिनों तक अपनी व्यवस्थाओ  के बारे में नहीं बोल पाये जब उन्हें मौत का डर लगा तब जाकर उन्होंने 24 अप्रैल को अव्यवस्थाओं को उजागर करते हुए अपनी कोरोना किट  की मांग की। उज्जैन की पूरी  अव्यवस्था  पर आँखे खोल देने और प्रशासन कोरोना इलाज के प्रति कितना गम्भीर है यह उदाहरण पर्याप्त है  ।  इसका परिणाम भी सामने है मरीजो की संख्या ।


सही जनप्रतिनिधित्व की जरूरत है ?
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उज्जैन में कोरोना बढ़ता जा रहा है । मौतों पर नियंत्रण नही हो रहा है स्थिति इतनी बिगड़ती है कि भाजपा के सेवाभावी पार्षद की दुखद मृत्यु हो जाती है क्या यह भी इस बात का संकेत नही है कि हमारे जनप्रतिनिधियों ने अपनी बात पहुँचाने में बहुत देर कर दी जबकि मीडिया शुरू से ही हर मुद्दे को उठा रहा था । अगर कोरोना के समय के मीडिया के समाचारो को देखा जाय तो हर जानकारी हर मीडिया ने उठाई है । मीडिया क्रियान्वयन एजेंसी नही है वो केवल आम आदमी और व्यवस्थाओ की बात उठा सकती है करना तो प्रशासन को है और  प्रशासन कर रहा है या नहीं ये नकेल जनप्रतिनिधियो को कसना है । जनप्रतिनिधियों की जो खबरे आम हुई है वह किसी से छिपी हुई नहीं है । आप प्रशासन से क्या कराना चाह रहे थे जो प्रशासन ने नहीं सुना । ये भी आपको स्पष्ट करना होगा । यहां भी वही प्रश्न है कि देर क्यो हुई । मीडिया को गम्भीरता से लेते तो यह दिन नहीं देखना पड़ता । सिर्फ प्रेस नोट और फोटो से व्यवस्था सुधर सकती तो कभी की सुधर जाती । उज्जैन के जनप्रतिनिधियों को सही प्रतिनिधित्व करना होगा । मीडिया को गम्भीरता से लेना होगा । तभी प्रशासन  आपको भी और मीडिया को गम्भीरता से लेगा । होना तो यह चाहिये कि प्रशासन को मीडिया को सारी जानकारी आगे रहकर बुला कर देना चाहिए । पर होता उल्टा है मीडिया को मीटिंग्स के नाम पर बात नहीं की जाती है या जानकारी में देरी की जाती है या समय निकाल दिया जाता है जनप्रतिनिधियो ने कभी देखा कि मीडिया कितनी कठिनाइयों में कार्य कर रहा है । तुरंत समय पर सही जानकारी उपलब्ध हो भी रही या नहीं । कितने पत्रकारों से बात की उनकी कठिनाईयों के लिए जनप्रतिनिधियो ने । फिर प्रशासन क्यों ध्यान देगा आप पर और मीडिया पर।


फील्ड में जाएं वरिष्ठ अधिकारी -
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उज्जैन में लोग विशेषकर मुस्लिम बस्तियों में शुरू से अपनी बीमारी  छुपा रहे हैं । कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक को फील्ड में जाकर लोगों में विश्वास जगाना चाहिए था , यदि फील्ड में जाकर लोगों में विश्वास जगातें तो ये बीमारी इतनी अधिक नहीं फैलती लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हुआ। वे यदि फील्ड में गए भी तो औपचारिकता निभाई । उन्हें रोज कंटेंटमेंट क्षेत्र में  जाकर लोगों का विश्वास जितना चाहिए । अभी लोग अपनी बीमारी छुपा रहे हैं । लोगों से जीवंत संपर्क होगा तो उनमें विश्वास जागेगा  और वे आगे आकर अपनी अपनी बीमारी बताएंगे । लोग आगे आकर अपनी बीमारी को बताये इसके लिए प्रशासन के आला अधिकारियों को शुरुआत से ही कटेन्टमेंट एरिया में  स्वयं जाकर लोगों से संपर्क करना चाहिए था और उन्हें अपनी बीमारी बताने के प्रेरित करना था , पर ऐसा नहीं हुआ औऱ परिणाम हमारे सामने है। इसका जिम्मेदार किसे ठहराने की आवश्यकता है ?


राज्य सरकार बरतें सर्तकता, उठाये सख्त कदम
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सिर्फ कलेक्टर के रूप में व्यक्ति बदलने से कुछ नहीं होगा । राज्य सरकार को स्वास्थ्य व्यवस्थाओ के मामले भी जल्द ही कड़ा निर्णय लेने की आवश्यकता है वरना इस महामारी का जो अंजाम होगा उसका जिम्मेदार कौन होगा ? अभी तो जिला प्रशासन पर ढोल देंगे पर इनसे नहीं सम्भालते बनी तो बात मध्यप्रदेश सरकार पर आएगी फिर इसका जवाब भी राज्य सरकार को देना होगा फिर मध्यप्रदेश सरकार यह नहीं कह सकेगी की यह  जिम्मेदारी तो प्रशासन की ही है । 
उज्जैन की स्थिति अब और नहीं बिगड़े , इसके लिए राज्य सरकार तुरंत सख्त कदम उठाए। उज्जैन में पूर्व में पदस्थ किसी वरिष्ठ संवेदनशील अधिकारी की उज्जैन में शीघ्र तैनाती करें । वह स्थिति पूरी तरह नियंत्रण में आये तब तक उज्जैन में ही रहे। वह निरंतर फील्ड में जाकर  निर्देश ही नहीं दें बल्कि उसका तुरंत क्रियान्वयन भी कराएं , तभी स्थिति नियंत्रण में आ सकेगी । प्रदेश के संवेदनशील मुख्यमंत्री श्री शिवराजसिंह चौहान से अब यही अपेक्षा है ।


अभी भी एक्शन नहीं लिया गया तो आगे जो कोरोना का प्रभाव होगा उसके लिए तैयार रहे ।


*संदीप कुलश्रेष्ठ, उज्जैन (लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं संपादक है)


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