*हर्षद भंडारी
कोरोना के इस काल में
भारत ने नया सपना देखा
मिल जुल कर रह रहा परिवार,
मिल जुल कर रह रहा परिवार,
घरों में एक संग बैठ खाना देखा
देश-विदेश की सुन्दरता भी
देश-विदेश की सुन्दरता भी
धरी रह गयी, जब
परिवार को संग इठलाता देखा
घंटो आफिस में काम थे
घंटो आफिस में काम थे
जिनके पास नहीं था समय
उन सबको भी घर के
कामों में हाथ बटाते देखा
लाखों खर्च करवा करवा कर
लाखों खर्च करवा करवा कर
बाते धर्म की जो सिखलाते थे,
संकट के इस क्षण में
संकट के इस क्षण में
वे भी खाना बटवाते है
बदल चुकी है अब
बदल चुकी है अब
इंसानियत की परिभाषा,
जुते चप्पल भी बांटने
की हो रही है अभिलाषा
दिल्ली के एक इशारे पर
दिल्ली के एक इशारे पर
हर हाथ में डंका देखा,
ताकत दिखलाता बिन दिवाली
जगमग सारा देश देखा
जय जवान जय किसान के जैसा
जय जवान जय किसान के जैसा
डाक्टरों का भी सम्मान देखा
गली मोहल्लो चौराहों पर
गली मोहल्लो चौराहों पर
फूल बरसना बिन बारात देखा
संस्कृति को जो भूल गये थे,
संस्कृति को जो भूल गये थे,
उन्हें भी नमस्कार करते देखा
*हर्षद भंडारी, राजगढ़ (धार)
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