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कम हो रहे हैं मौत के फासले



*सुरेश शर्मा



सुबह से  आज  शाम  हो  गई  ,
बस ! यूंही  घर बैठे  बैठे ।
मन व्यथित  होने  लगा  है  अब ,
कोरोना  की भयावह  नतीजों के बारे में ;

कांटो  सा चूभने लग गया  है अब तो ,
दिल बैठा  जा रहा  है  ।
दिन  दुनिया  की  हालात देखकर ,
दहशत  दिलो-दिमाग  मे बैठा है ;
आहिस्ता  आहिस्ता पस्त  हो रहें  हौंसले ।

घर बनता जा रहा  है  अब ,
पंछियों के  रहने  वाले  घोंसले ।
हम बेबस है , लाचार  सारी दुनिया ,
मौत की आगोश मे सोते  जा रहे हम ;
आहिस्ता आहिस्ता कम हो रहे  मौत के फासले ।

*सुरेश शर्मा,गुवाहाटी


 


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