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काव्य विमर्श : कविता क्या?... क्यों?... किस तरह?... 



विश्ववाणी हिंदी संस्थान अभियान जबलपुर द्वारा  15 वें काव्य विमर्श : कविता क्या?... क्यों?... किस तरह?... ऑनलाइन संगोष्ठी का आयोजन 18 मई को किया गया । वाग्देवी शारदा तथा विघ्नेश्वर गजानन के श्री चरणों में प्रणति निवेदन के साथ डॉ. अनामिका तिवारी लिखित सरस्वती वंदना का सस्वर गायन मीनाक्षी शर्मा 'तारिका' ने किया। आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' ने विषय प्रवर्तन करते हुए कविता को अनुभूत की सरस अभिव्यक्ति निरूपित करते हुए लोक ग्राह्यता को कविता की कसौटी बताया। भीलवाड़ा की कवयित्री पुनीता भरद्वाज ने कविता में सरसता और दोषमुक्तता होना आवश्यक बताया। इंजी. अरुण भटनागर ने  कविता को लोकोत्तर उदात्त भावनाओं की वाहक बताया। डॉ. अनामिका तिवारी ने कविता को समय का दर्पण निरूपित करते हुए उसे जान संवेदनाओं की वाहक बताया। भारतीय वायु सेना में योद्धा रह चुके ग्रुप कैप्टेन श्यामल सिन्हा ने कविता को जीवन व्यापारों हुए मनोवेगों की सकारात्मक अभिव्यक्ति का माध्यम बताया। मेदिनी नगर पलामू झारखंड से सहभागिता कर रहे वरिष्ठ कवि श्री श्रीधर प्रसाद द्विवेदी ने भारतीय तथा पाश्चात्य समीक्षकों के मतों की तुलना करते हुए कविता को जीवन का अपरिहार्य अंग बताया। 
डॉ. मुकुल तिवारी ने कविता को जीवन में कविता की उपस्थिति को अपरिहार्य बताया।  श्रीमती मनोरमा रतले प्राचार्य दमोह ने कविता को ज्ञान की ग्राह्यता का सरस-सरल माध्यम माना। श्रीमती विनीता श्रीवास्तव ने कविता को लोक मंगलकारी स्वार्थपरता से परे सामाजिकता न मानवता का कध्याम निरूपित किया। दमोह से पधारी कवयित्री बबीता चौबे 'शक्ति' दमोह ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कविता में सन्देशपरकता और प्रवहमानता  को आवश्यक  बताते हुए कविता को आत्मा से निकली आवाज़ बताया।सुषमा शैली दिल्ली ने कविता को समाज का आइना निरूपित किया तथा सर्वेश्वर दयाल सक्सेना जी चुपाई मारो दुलहिन कविता का उल्लेख किया।  टीकमगढ़ के साहित्यकार राजीव नामदेव राणा लिघौरी ने कविता के भाव सौंदर्य,  विचार सौंदर्य,  नाद सौंदर्य तथा योजना सौंदर्य पर प्रकाश डाला। प्रो. आलोक रंजन ने  ह्रदय, भाव योग और कविता को परस्पर पूरक बताया। भाव योग से ज्ञान योग तक की यात्रा में कविता की भूमिका को मधुमति भूमिका बताया। 


आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' ने रस -छंद-अलंकार तथा प्रत्यक्ष-परोक्ष अनुभूति की चर्चा करते हुए कहा कि कविता में भाषा की तीनों शक्तियों अमिधा, लक्षणा तथा व्यंजना की प्रासंगिकता है। विमर्श के अध्यक्ष लखनऊ से पधारे प्रसिद्ध छंद शास्त्री राजेंद्र वर्मा ने विधागत मानकों, छंद और भाव की प्रतिष्ठा को आवश्यक बताते हुए अच्छी कविता का निकष मन को अच्छी लगना बताया। उनहोंने कवि को अपना आलोचक होना जरूरी बताया। अंत में विमर्श के अध्यक्ष श्रेष्ठ-ज्येष्ठ साहित्यकार आचार्य भगवत दुबे ने कवि को अपने युग का प्रवक्ता बताते हुए, अतीत के गौरव का प्रवक्ता होने के साथ युग का सचेतक निरूपित किया। डॉ. मुकुल तिवारी प्राचार्य महिला महाविद्यालय ने इस विचारपरक विमर्श के अतिथियों, सहभागियों संयोजकों आदि के प्रति आभार व्यक्त किया।


 


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