*पवन कुमार सैनी
स्वच्छंद आकाश में कभी धूप कभी छांव में ।
पर्वतो से टकराता मैं के हालात में ।।
तूफान सी चलती हवायें ललकार जाती मुझे ।
जब चीरता सीना उसका फिर संभाल जातीं मुझे।
रात का सन्नान्टा यूँ चींखता मेरे कानो में।
नहीं है दम तेरे इन भीम सी भुजाओं में।
तपता हुआ जब भागता सूर्य की गर्मी में।
वो भी पहचानता जिद है मेरी जीतने में।।
यूँ तो अक्सर जज्बातो से खिलवाड़ खूब हुई मेरे।
वक्त तिनका सा भी ना गिरा पाया तन से मेरे।।
ये पवन यूँ चलती है इस 'पवन' को झझोड़ने को ।
रग रग यूँ मचलता मेरा, मुझे संभालने को।।
हालातो से अब रोज लड़ता हूं मैं।
मन यही बोलता है, जीतूँगा और जीतता हूँ मैं ।।
*अलवर ,राजस्थान
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