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इतना बेबस लाचार मजदूर हुआ है क्यों



*प्रो. रवि नगाइच



है इत्र पसीना जिसका मजबूर हुआ है क्यों
इतना बेबस लाचार मजदूर हुआ है क्यों


अनगिनत अभावों में 
श्रम साध्य प्रभावों में
आंखों  में अश्रु  भरे 
जी  रहा  तनावो  में 
हे मेहनतकश लेकिन सुख से दूर हुआ है क्यों
इतना बेबस लाचार मजदूर हुआ है क्यों


खेतो  खलिहानो  में 
और बाग बागानों में 
श्रम होता अभिसिंचित
हर एक  खदानों  में
सुविधा का  आंगन शोषण से भरपूर हुआ है क्यों
इतना बेबस लाचार मजदूर हुआ है क्यों


नदियों को मोडे वह
पत्थर को तोड़े  वह
हर भव्य  इमारत की
ईटो  को जोड़ें  वह
श्रम की महिमा गाकर न मशहूर हुआ है क्यों 
इतना बेबस लाचार मजदूर हुआ है क्यों


वह स्वाभिमान ओढ़े
पर्वत  को  भी  फोड़े
फिर भी उसका जीवन
ना पटरी  पर  दौड़े 
हैं नूर इमारत का  जिससे, बेनूर हुआ है  क्यों 
इतना बेबस लाचार मजदूर हुआ है क्यों


ना घर है घरौंदा है 
बस भूख मसौदा है 
सपने अरमानों को
अपनों ने ही रौंदा है
मन मे आशा बांधे,थक कर चूर हुआ है क्यों
इतना बेबस लाचार मजदूर हुआ है क्यों


हर गम पीता रहता
मरता जीता रहता 
दामन सुख सुविधा से
बिल्कुल रीता रहता 
रहे फटे हाल परिवार जमाना क्रूर हुआ है क्यों 
इतना बेबस लाचार मजदूर हुआ है क्यो


*प्रो. रवि नगाइच, उज्जैन (म.प्र.)


 


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