*आशु द्विवेदी
चूड़ी बिंदी पायल कंगन!
हमको बडा ही भाते है।
अपने प्यार की खुशबु से!
हर आँगन हम महकाती हैं।
पर अगर जरूरत पड जाए तो!
हम शस्त्र भी उठाती है।
हम हैं वो नारी जो!
नर पर भारी पड़ जाती हैं।
फूलों सी नाजुक हैं हम!
जो बागों में खिल जाती हैं।
अपना प्यार और स्नेह!
हम सब पर ही लुटाती हैं।
पर अगर जरूरत पड़ जाए तो।
हम चट्टान भी बन जाती हैं।
हम हें वो नारी जो!
नर पर भारी पड जाती हैं।
मीरा बन कर प्रेम किया तो
लक्ष्मी बन रणभूमि में दुश्मन को धूल चटाई है।
इतिहास के पन्नों में हमनें!
अपना मान बढ़ाया है।
हम हैं वो नारी जो!
नर पर भारी पड जाती है।
अगर पूजोगे हमको तो!
हम गौरी और सीता सी हैं।
पर अगर किया अपमानित हमको!
तो हम रंणचंडी भी बन जाती हैं।
हम हें वो नारी जो!
नर पर भारी पड जाती हैं।
*सोनिया विहार दिल्ली
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