ब्रह्मानंद गर्ग सुजल
है अंधियारी रात कारी
रोशनी तम से हारी
नभ में छाई वीरानी है मगर
हार कहाँ हमने मानी है...!!
प्रकृति के चक्र में विघ्न हो
मानव कर्म से छिन्न भिन्न हो
तब हाहाकार से कैसी हैरानी मगर
हार कहाँ हमने मानी है...!!
मानव के स्वछंद विचरण को
असमानता से युक्त वितरण को
कुदरत से होती अक्सर परेशानी है मगर
हार कहाँ हमने मानी है....!!
संकट घोर छाया है
काल विपदा भर आया है
मौत ने जिंदगी से जंग ठानी है मगर
हार कहाँ हमने मानी है.....!!
हर समस्या का हल होगा
बाधा पार कर मनुज चल होगा
उम्मीद ज़िंदा है बात ये जानी है मगर
हार कहाँ हमने मानी है...!!
जीवन फिर चलेगा उमंग लिए
नव पथ पर नव तरंग लिए
राह मुश्किल में भी बनानी है मगर
हार कहाँ हमने मानी है...!!
*जैसलमेर(राज)
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