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हाँ मैं खुश हूं......लॉक डाउन मे भी


एक वायरस ने सारी दुनिया में लॉक डाउन   कर दिया है। बाजार बंद ,स्कूल-कॉलेज बंद ,ऑफिस बंद, मॉल बंद ,घर से बाहर निकलने पर पाबंदी है। हर किसी की जुबां पर है कि इस वायरस  ने सब कुछ बदल दिया है। ज़िंदगी रुक सी गई है, थम सी गई है ।चारों तरफ दहशत का माहौल है। आज किसी की एक छींक  आसपास के लोगों के चेहरे का रंग बदल देती है ।

ये बात अलग है कि इंसान ने  रंग बदलने में गिरगिट को भी पीछे छोड़ दिया है। इंसान,इंसान से दूरी बनाने के लिए मजबूर हो चुका है ।सामाजिक दूरियां बनाने  की बात की जा रही है ।वैसे तो इस भागती दौड़ती जिंदगी में इंसान के पास पहले भी कहाँ  एक दूसरे के लिए वक्त था। पहले भी इंसान सिर्फ अपने में खोया हुआ था। बस एक रेस में दौड़ रहा था, उसे पूरी करने के लिए। हां ये जरूर है इस वायरस ने इस रेस में ब्रेक लगा दिये हैं, दौड़ती - भागती ज़िंदगी को रोक दिया है- लॉक डाउन कर दिया है।

पर मेरी जिंदगी तो आज भी वैसे ही चल रही है ।मेरी जिंदगी में आज भी कोई लॉक डाउन नहीं है ।कोरोना वायरस ने मेरी जिंदगी को नहीं बदला है । आज भी मेरी सुबह -"अरे सुनती हो,  एक कप चाय तो देना , मम्मी नाश्ता तैयार है और कितना समय लगेगा"  से शुरू होती है।  मेरे लिए अब भी घड़ी की सुईओं की रफ्तार वही है।  आज सबके लिए समय बिताना मुश्किल है पर मेरा समय तो नहीं थमा वो कब कैसे बीत जाता है ,पता ही नहीं चलता है। पतिदेव बच्चों की फरमाइश को पूरा करते हुये  मैं आज भी कोरोना वायरस की वजह से हुई लॉक डाउन का मतलब खोज रही हूं और सोच रही हूं कि सच में सब कुछ लॉक डाउन है।

फिर मुझे याद आता है कि मेरी सेवाएं तो आपातकालीन सेवाओं की श्रेणी में आती हैं जो कि 24 घंटे बिना रुके हर परिस्थिति में जारी रहती है।मैं भी सब की तरह भगवान से प्रार्थना कर रही हूं कि यह वायरस जल्दी से दुनिया को छोड़ कर चला जाए ताकि मेरी कामवाली के दर्शन मुझे हो सके। लॉक डाउन शुरू होते ही मेरे पतिदेव ने बड़े प्यार से मुझे कहा-" देखो तुमको हमेशा मुझसे शिकायत होती थी कि मैं तुम्हारे साथ समय नहीं बिताता हूं ,अब यह 21 दिन का पूरा समय तुम्हारा है।" यह सुनकर मैं खुश हो गई और भगवान को धन्यवाद दिया कि भगवान ने मेरी सुन ली। पर उसी समय कहीं से मेरे कानों में आवाज आई कि " पगली ,ये सब छलावा है इस छलावे में मत आना ,तुमको तो बस जैसे  अब तक काम करती आ रही हो, बस वैसे  ही काम करना है"। मैंने इधर उधर देखा पर कोई नहीं था ,यह मेरे अंदर की आवाज थी ,इसी के साथ मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई और अपने को धिक्कारते हुये मैंने कहा "मैं भी क्या सोचने लगती हूं सच ही तो कह रहे हैं कि जब पूरी तरह से लॉक डाउन है तो इनका सारा समय अब मेरा ही तो है।"

पर जैसे-जैसे समय बीतने लगा तो समझ आया कि मेरे अंदर की आवाज सही थी। लॉक डाउन का समय मेरा नहीं था, वह समय था मेरी सौतन का ,हां मेरी सौतन मोबाइल का । मेरे लिए तो  आज भी  वही स्थिति है जो लॉक डाउन से पहले थी।  मेरे लिए कुछ नहीं बदला है। पर फिर भी मैं खुश हूं , मैं खुश हूं चाय ,नाश्ता और परिवार के सदस्यों की फरमाइशों  को पूरा करके। मैं खुश हूं कि मेरा परिवार मेरे आंखों के सामने है।  मैं खुश हूं यह देखकर कि मेरे परिवार के हर सदस्य के चेहरे पर आज भी वो ही मुस्कुराहट है  जो पहले थी। मैं खुश हूं लॉक डाउन के  दौरान पति द्वारा कभी-कभी कहे गए इन शब्दों से "क्या दिन भर रसोई में काम करती रहती हो , दो घड़ी आराम भी कर लिया करो"।  मैं खुश हूं जब मेरे बच्चे मेरे गले में बाहें डालकर कहते हैं कि "मां तुम कितनी अच्छी हो "। उसी समय सारी थकान दूर हो जाती है,   जब वो अंगुली चाटते हुये कहते हैं कि " मां सब्ज़ी बहुत अच्छी बनी है ", मैं मुस्कुरा देती हूं और दुगुने उत्साह के साथ अपनी आपातकालीन सेवा में एक योद्धा की तरह लग जाती हूँ । हां मैं खुश हूं....
*डॉ. रेनू श्रीवास्तव,कोटा(राजस्थान)

 

 

इस विशेष कॉलम पर और विचार पढ़ने के लिए देखे- लॉकडाउन से सीख 


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