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गुरुग्राम गरिमा काव्य गोष्ठी



देश में लॉकडाउन की स्थिति को देखते हुए साहित्य एवम समाज को समर्पित संस्था "परम्परा" गुरुग्राम द्वारा साहित्य की अविरल धारा बहाने हेतु काव्य तथा संगीत गोष्ठियों का अनवरत क्रम ज़ारी है। इसी क्रम में केवल गुरुग्राम के सहित्यकारों को लेकर एक डिजिटल काव्य गोष्ठी "गुरुग्राम गौरव गोष्ठी" का आयोजन शनिवार, दिनांक 23 मई'2020 को किया गया। इसमें अपने-अपने घरों से ही मोबाइल व कम्प्यूटर के माध्यम से कविताएं सुनाकर, गोष्ठी सफलतापूर्वक आयोजित की गई । गोष्ठी की अध्यक्षता वरिष्ठ पत्रकार, गुड़गांव टुडे के सम्पादक श्री अनिल आर्या जी ने की। निर्धन व ज़रूरतमंद परिवारों के लिए समर्पित सुप्रसिद्ध समाजसेविका डॉ नलिनी भार्गव जी अति विशिष्ट अतिथि के रूप में विराजमान रहीं। वरिष्ठ सहित्यकारा श्रीमती सविता स्याल जी ने विशिष्ट अतिथि की भूमिका निभाई। गोष्ठी में सान्निध्य प्राप्त हुआ शब्द शक्ति संस्था के अध्यक्ष श्री नरेन्द्र गौड़ जी का। विशेष रूप से उपस्थित रहीं वरिष्ठ शिक्षाविद डॉ सरोज गुप्ता जी एवम विश्व भाषा अक़दमी की हरियाणा प्रदेश उपाध्यक्ष डॉ कृष्णा जैमिनी जी।
गोष्ठी का आयोजन एवम संचालन महिला काव्य मंच की हरियाणा प्रदेश उपाध्यक्ष श्रीमती इन्दु "राज" निगम व परम्परा के संस्थापक अध्यक्ष राजेन्द्र निगम "राज" द्वारा किया गया। इस गोष्ठी में कोरोना वायरस से लड़ने हेतु जागरूकता फैलाने वाली रचनाओं के साथ ही अन्य विषयों पर भी रचनायें प्रस्तुत की गईं। प्रस्तुत रचनाओं की एक बानगी इस प्रकार है-


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दर्पण मेरा रूप तुम्हारा, ये कैसा जादू है
जब भी सोचूँ तुमको सोचूँ, पल-पल तेरी यादें


अनिल आर्या
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‘ देखो शाम ढल रही.....’
‘और चला गया वो पथ पर अपने,
हो मौन उसी चाल से।’


नलिनी भार्गव
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तुम्हारी प्रीत की डगर में
मेरे कदमों का ठिकाना रहे
प्रीत की रीत निभा सकूँ मैं
मिजाज़ मेरा आशिकाना रहे


कृष्णा जैमिनी
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रूप का दर्पण लिए तुम सामने जो आ खड़ी हो 
लग रहा है चांद का प्रतिबिंब दर्पण पर पड़ा है ।


सरोज गुप्ता 
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ये बुरा वक्त भी कट जाएगा
गर्दिश का बादल हट जाएगा
नवकिरण करेगी नव सर्जन
अंधियारा भी ये छट जाएगा


सुशीला यादव गुरुग्राम
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कौन कहता है आईना कभी झूठ नही बोलता
लिपेपुते चेहरों को देख मुस्कुरा देता है .....


सविता स्याल
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नाच उठता हूँ कभी भी,साज़ दिल में बज उठें
नाचना पेशा नहीं मेरा, किसी दरबार में


सुजीत कुमार
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अनकहे से कुछ ख्वाब गठरी में बांधकर.. 


रश्मि चिकारा
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चीर कर कलि का ह्रदय, नवयुग का निर्माण करो! 
स्वयं के लिए तो सब जिए- तुम जन-जन का कल्याण करो!!
उठो मनु की संतानों! कि हिम्मत हार बैठना- निष्कर्ष नहीं!!


दीपशिखा श्रीवास्तव
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ठहर  गया  तो   निशाँ  न  होगा,उजास फिर  दरमियां  न  होगा।
निकल पड़े जो  शमा  जलाकर, जुनूँ ए  मंजिल  धुआं  न  होगा।


मीना 'सलोनी'
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 पीके भंग लिखा हास्य व्यंग्य
आए पसंद बजाना तालिया
वरना जी भर के देना गालिया
करुगा ना किसी से शिकवा


सुरेन्द्र मनचन्दा
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ज़रा मुस्कराएं हम, ज़रा गुनगुनाएं हम
ज़माने के सब ग़म, चलो भूल जाएं हम


इन्दु "राज" निगम
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झूठी सच्ची खबरों,झूठे नारों से डर लगता है
टीवी से हम डरते हैं,अखबारों से डर लगता है


राजेन्द्र निगम "राज"


 


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