*आयुष गुप्ता
आज तो है मरासिम कल बाते चार हो न हो,
अभी हमें यकीन है फिर ये एतबार हो न हो।
तुम्हें सोचता हूँ तो अक्सर मुस्कुरा लेता हूँ,
हिज़्र के मौसम में फिर ये खुमार हो न हो।
हो गर इश्क़ तुम्हें भी मुझसे तो इज़हार करो,
अभी मैं भी राज़ी हूँ कल मुझे प्यार हो न हो।
चिराग़-ए-इश्क़ हवाओं से कब तलक लड़ेंगे,
आँधियाँ तेज़ गर हुई तो सहन वार हो न हो।
जाना और न तड़पाओ अब चली भी आओ,
अभी मैं मुंतज़िर हूँ फिर यूँ इंतज़ार हो न हो।
जिसे तुम देखती हो वस्ल की राह का पर्वत,
तुम साथ दो गर तो फिर वो संसार हो न हो।
*आयुष गुप्ता,उज्जैन
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